क्या वंदे मातरम् और तिरंगे से प्यार करना किसी के बहिष्कार की वजह बन सकता है. यकीन करना मुश्किल है लेकिन आगरा के गुलचमन शेरवानी के साथ ऐसा हुआ है. देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट... 36 साल के गुलचमन शेरवानी का राष्ट्रगीत वंदे मातरम् और देश के तिरंगे झंडे से प्रेम कुछ ऐसा है कि इसके लिए उन्हें अपना घरबार, अपना समाज, अपना सबकुछ छोड़ना पड़ा.गुलचमन का मजहब इस्लाम है लेकिन ईद-बकरीद की तरह 15 अगस्त और 26 जनवरी को भी पर्व की तरह मनाते हैं. दरअसल, वंदे मातरम के प्रति गुलचमन के लगाव और 11 साल पहले देश के दस मौलानाओं के खिलाफ शुरू हुए इनके भूख हड़ताल के बाद दिल्ली के इमाम ने इन्हें काफिर करार दे दिया और आगरा के तमाम मुस्लिम समाज ने बिरादरी से बेदखल कर दिया है.