पिछले तीन दिनों से पूरे उत्तर भारत में कुदरत आफत बन कर बरसी है. खूबसूरत दिखने वाले पहाड़ इस वक्त जानलेवा शक्ल अख्तियार कर चुके हैं. उत्तराखंड में नदियों का उफान थोड़ा थमा है लेकिन विनाशलीला जारी है. उत्तराखंड के उत्तरकाशी और चमोली में ही 50 हजार लोग फंसे हैं, जबकि उत्तराखंड में अब तक 58 लोगों के मारे जाने की खबर है.
कुदरत के कोप की तस्वीरें रौंगटे खड़े कर रही हैं. नदी अपने रौद्र रूप में हैं. लग रहा है जैसे नदी की धार पुल को अपने आगोश में समाने को बेताब है. बात हो रही है पिथौरागढ़ के धारचुला की जहां खतरे को भांपते हुए एक पुल पर से आवाजाही बंद कर दी गयी है.
धारचुला में काली और गोरी नदियां इस वक्त ऐसा विकराल रूप धर चुकी हैं कि किनारे बसे कई मकान अबतक इसकी धार में समाधि ले चुके हैं. अब भी किनारों का कटाव थमा नहीं है. जो मकान किनारे पर खड़े नजर आ रहे हैं, उनकी भी नीव तेजी से खोखली होती जा रही है. देख कर ही एहसास हो रहा है कि किसी भी पल ये इमारतें उफनती नदियों की धार में रेत के टीले की तरह ढेर हो जाएंगी.
खबर है कि अबतक 30 मकान सैलाब की भेंट चढ़ चुके हैं, सेना के कई कैंप भी काली नदी में समा गए हैं. व्यास और दरमा घाटी में भी काफी नुकसान की खबर है. कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर गए श्रद्धालुओं का जत्था भी सड़क संपर्क कट जाने की वजह से बीच में फंसा है. उत्तर काशी में तो मुख्यालय को जोड़ने वाला त्रिलोथ पुल ही आधा बह चुका है. यहां भी 70 से ज्यादा इमारतों के क्षतिग्रस्त होने की खबर है.
अल्मोड़ा में तो एक बस पर चट्टान गिरने की वजह से दर्दनाक हादसा हुआ. वो बस चट्टान के साथ ही खाई में गिर गयी. बस में सवार 4 लोगों की मौत की अब तक पुष्टि हो चुकी है जबकि 37 लोगों को अभी ढूंढा जा रहा है.
ऋषिकेश में गंगा अपना रौद्र रूप दिखा रही है. एक दिन पहले तक जहां भगवान शिव की मूर्ति नजर आ रही थी वो अब गायब है. गंगा की धार में भगवान शिव भी जलमग्न हो गए. परमार्थ आश्रम के चिदानंद स्वामी का कहना है, 'गंगा का अल्टीमेटम है. शिव ध्यान मग्न थे अब वो जल मग्न हो गए. गंगा के तट पर बसे लोगों के लिए ये संदेश है. प्रदूषण फैलाने वालों के लिए संदेश है- मेरे किनारों को भी तुमने नहीं छोड़ा.
ऋषिकेश का स्वामीनारायण आश्रम का भी आधे से अधिक हिस्सा गंगा की भेंट चढ़ चुका है. सोमवार को दोपहर बाद गंगा का जलस्तर बढ़ना शुरू हुआ तो इस आश्रम ने बाढ़ की विनाशलीला देखी. अब जब गंगा का गुस्सा थोड़ा कम हुआ है, अब जब गंगा अपने पाटों में सिमट रही है तो उसके बरपाए कहर के निशान नजर आ रहे हैं.
हरि तक पहुंचने के द्वार यानी हरिद्वार पर आकर आमतौर पर गंगा शांत हो जाती हैं. लेकिन इस बार तो यहां भी वो लहरती रहीं. यहां पर भीमगोड़ा बराज में पानी खतरे के ऊपर जा पहुंचा है.
आफत के बीच जारी है राहत कार्य
आफत के बीच राहत पहुंचाने की भी कोशिशें हो रही हैं. राज्य सरकार से लेकर सेना तक अलग-अलग जगहों पर फंसे लोगों को बचाने की कोशिशें कर रही हैं. राहत और बचाव कार्यों के बीच कई जगहों से बदइंतजामी की भी शिकायतें मिल रही हैं.
पहाड़ों पर आफत का पहाड़ टूटा है. नदियां अपने विकराल रूप में हैं. सबकुछ बहा ले जाने पर आमादा इन नदियों के बीच हजारों की तादात में इंसानी जिंदगियां फंसी हैं. देश के कोने-कोने से चारधाम की यात्रा पर निकले लोगों को कुदरत ने पांव खींचने पर मजबूर कर दिया है. 5 हजार से ज्यादा सेना के जवान लोगों की मदद में जुटे हैं. सड़कें बह गयी हैं, चलने लायक रास्ता नहीं बचा है, बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्गों तक को बड़ी मुश्किल से सुरक्षित ठिकानों तक पहुंचाया जा रहा है.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने बताया, 'पूरा उत्तराखंड इस वक्त प्राकृतिक आपदा से गुजर रहा है, हमारी कोशिश है कि कैसे जल्द से जल्द राहत पहुंचायी जाए, हर चार घंटे पर समीक्षा कर रहे हैं. मौसम ठीक हो गया है, हेलीकॉप्टर से मदद पहुंचायी जा रही है. अभी उत्तराखंड में चारधाम यात्रा चल रही है. 70 हजार लोग फंसे हुए हैं. मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि अगले 48 घंटे मुश्किल भरे हो सकते हैं.
सोमवार तक मौसम खराब होने की वजह से रेस्क्यु ऑपरेशन में वायु सेना मदद नहीं कर पा रही थी. लेकिन अब सेना के हेलीकॉप्टर भी राहत और बचाव कार्य में जुटे हैं. उत्तराखंड के जिन इलाकों में कुदरत का कहर बरपा है उन इलाकों में लोगों की मदद के लिए आईटीबीपी की टुकड़ियां भी भेजी गयी हैं. हरिद्वार के लक्सर में बाजार में भी बाढ़ का पानी घुस गया है और खानपुर के फतवा गांव सहित एक दर्जन से ज्यादा गांवों में बाढ़ आ गई है. प्रशासन बाढ़ग्रस्त इलाकों से लोगों को बचाने की कोशिश कर रहा है. हरिद्वार में लोगों को बदइंतजामी का भी सामना करना पड़ रहा है. बसें बमुश्किल चल रही हैं, ऐसे में अपने अपने ठिकाने पर पहुंचने को बेताब लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
हरिद्वार में रेलवे स्टेशन पर भी शरणार्थी शिविर जैसा मंजर है. लोग भेड़-बकरियों की तरह ठुंसे पड़े हैं. ट्रेनें फुल हैं. लोगों का इंतजार लंबा हो रहा है. प्रशासन की बदइंतजामी को कोस कर लोग गुस्सा निकाल रहे हैं. लोग प्रशासन पर तो गुस्सा उतार सकते हैं लेकिन कुदरत के कोप का क्या करें जो फिलहाल किसी के काबू में नहीं.