शंकर का धाम केदारनाथ जून के सैलाब में बुरी तरह से तबाह हो चुका है. अब बिलकुल वैसा ही खतरा मंडरा रहा है विष्णु के धाम बद्रीनाथ पर. बद्रीनाथ से 8 किलोमीटर ऊपर अलकनंदा के रास्ते में बन गयी है एक अस्थाई झील जिसमें जमा हो रहा है भारी मात्रा में पानी. अगर झील का किनारा टूट जाता है तो फिर जो सैलाब नीचे दौड़ता हुआ आएगा. वो रास्ते में सबकुछ तबाह कर सकता है.

16 जून और 17 जून को आसमान से उतरी तबाही और धरती पर मौजूद मलबे के खतरनाक कॉकटेल ने ऐसी तबाही मचाई कि सालों साल तक इस त्रासदी को यादकर उत्तराखंड सिहर उठेगा. बर्बादी की इन तस्वीरों को यादकर अभी भी रूह कांप उठती है. केदारनाथ और केदारघाटी में करीब 1000 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है जबकि लगभग 4000 लोगों का अभी तक कोई अता पता नहीं है.

सेटेलाइट तस्वीरों को अगर देखें तो बद्रीनाथ से करीब 8 किलोमीटर दूर बने अस्थाई झील की स्थिति स्पष्ट नजर आती है. भागीरथ खरक ग्लेशियर और सतोपंथ ग्लेशियर के बीच अलकनंदा नदी का रास्ता रुक गया है. अलकनंदा का रास्ता रोका है भगयानु बैंक ग्लेशियर से नीचे आए मलबे ने और इसी रास्ते के रुकने से ये अस्थाई झील बन गई है.
अलकनंदा नदी के रास्ते में बने इस अस्थाई झील का क्षेत्रफल है करीब 2553 वर्गमीटर है जिसमें भरा हो सकता है करोड़ों गैलन पानी. फिलहाल मलबे से झील का किनारा बंधा हुआ है लेकिन अगर झील के किनारों में भारी बारिश से सेंध लगती है तो फिर सैलाब की शक्ल में पानी अपने साथ मलबों को लेता हुआ निचले इलाकों को तबाह कर सकता है.
हैदराबाद में इसरो की एक संस्था लगातार इस अस्थाई झील पर नजरें बनाए हुए है. माना गांव, बद्रीनाथ, जोशीमठ, चमोली और कर्ण प्रयाग में रहने वाले लोगों को हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है. जिला प्रशासन ने केदारनाथ की आपदा को देखते हुए बद्रीनाथ के ऊपर काबिज खतरे की इस आशंका को गंभीरता से लिया है. प्रशासन की तैयारियों से ही इसे समझा जा सकता है.

बद्रीनाथ से करीब 3 किलोमीटर की दूरी पर बसे हिंदुस्तान के आखिरी गांव माना पर खतरा बड़ा है क्योंकि अस्थाई झील से इस गांव की दूरी करीब 6 किलोमीटर ही है. हालांकि बद्रीनाथ से फिलहाल सभी यात्रियों को सुरक्षित निकाल लिया गया है लेकिन जब यात्रा दुबारा से शुरू होगी, उस वक्त अगर बरसात के बाद अस्थाई झील का किनारा टूटता है तो फिर बर्बादी और विनाशलीला की एक नई तस्वीर सामने आ सकती है.