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कुंभ नगरी हरिद्वार में कोरोना का कहर, श्रद्धालुओं की भीड़ खतरे से बेखबर!

मुख्य शाही स्नान के अगले दिन हर की पैड़ी सहित हरिद्वार के घाटों पर भी लापरवाह श्रद्धालुओं की भीड़ तो जुटी लेकिन एक दिन में ही आंकड़ा 20 हजार पर आ गया. घाट सूने तो दिखे, लेकिन लापरवाही से अछूते नहीं.

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कुंभ मेले के दौरान कोरोना गाइडलाइंस का पालन नहीं किया गया (पीटीआई)
कुंभ मेले के दौरान कोरोना गाइडलाइंस का पालन नहीं किया गया (पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • एहतियातन 20 अतिरिक्त जांच टीमें लगाई गई: CMO
  • कोरोना प्रोटोकॉल पर फिर से सख्तीः मेला अधिकारी
  • कुंभ मेले के दौरान श्रद्धालुओं में नहीं दिखी सावधानी

कुंभ नगरी हरिद्वार में कोरोना का कहर और शाही स्नान एक रफ्तार से बढ़ते रहे. फिर कुंभ पर्व से कोरोना आगे निकल गया. श्रद्धालु और प्रशासन दोनों ढोल पीट-पीट कर खानापूर्ति में लगे रहे और कोरोना वायरस खामोशी से अपना काम करता रहा.

मुख्य शाही स्नान के अगले दिन हर की पैड़ी सहित हरिद्वार के घाटों पर भी लापरवाह श्रद्धालुओं की भीड़ तो जुटी लेकिन एक दिन में ही आंकड़ा 20 हजार पर आ गया. घाट सूने तो दिखे, लेकिन लापरवाही से अछूते नहीं. बिना मास्क लगाए ग्रामीण और शहरी लोग गंगा में डुबकी लगाकर अमृत तलाशने इधर से उधर घूम रहे थे. रंग बिरंगे कपड़ों में महिलाएं बिना मास्क के हंसती बतियाती लोकगीत गाती दिखीं. लेकिन मास्क नहीं.
 
मेला प्रशासन के आला अधिकारी बातचीत में शालीन तो जरूर हैं लेकिन 13 संन्यासियों और बैरागियों के अखाड़ों के शाही स्नान के बाद पुलिस अखाड़े ने जिस तरह हिल मिल कर गंगा स्नान किया वो उत्साह का चरम था लेकिन कोरोना प्रोटोकॉल किनारे खड़ा पैर के अंगूठे से मिट्टी खोद रहा था क्योंकि उत्तराखंड पुलिस का पूरा अमला अपने महामंडलेश्वर यानी आईजी को कंधे पर उठाए गंगा स्नान में जुटे थे. कामयाब कुंभ के जश्न में डूबे.

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कोरोना प्रोटोकॉल के नाम पर खानापूर्ति

तीन कुंभ के बाद सभी शाही स्नान बिना किसी विघ्न बाधा के संपन्न हुए हैं. कुछ तो भीड़ कम और कुछ चाकचौबंद मैनेजमेंट के असर से ये सब हो तो गया लेकिन कोरोना प्रोटोकॉल के नाम पर खानापूर्ति ज्यादा दिखी.

संतों के अखाड़ों में प्रशासन की कोरोना की जांच टीमें तो काउंटर लगाए बैठी रही लेकिन संन्यासी उदासीन रहे या अड़े रहे. हमें जांच नहीं करानी तो नहीं करानी. जिनके यहां पानी सिर से ऊपर गया तो जांच कराई पॉजिटिव आए अस्पताल में भर्ती भी हुए. कुंभ के अमृत की बूंदों के बजाय ड्रिप्स के ड्रॉप्स ने जान बचाई. कुछ इस असार संसार को छोड़ अ-मृत भी हो गए. यानी कोरोना ने अपना काम कर दिया.

हरिद्वार की गलियों में दबी जबान से लोगबाग चर्चा तो करते दिखे कि अखाड़ों की ओर तो रुख भी नहीं करना वरना जिंदगी की लड़ी टूट जाएगी. चलते फिरते कोरोना से सामना हो सकता है मेला क्षेत्र में. किसी का कुछ पता नहीं. कौन कैसा प्रसाद दे जाए. घर जाकर ही पता चले कि पुड़िया में क्या मिला!

लापरवाही के लिए कौन जिम्मेदार

इन सब के बावजूद लोगबाग इस बात से कतई बेखबर दिखे कि बिना मास्क के वो इस कुंभ से अमृत की बजाय जानलेवा विष यानी विषाणु ही ले जाएंगे. हैरत तो तब हुई कि परिजनों के अस्थि विसर्जन के लिए आए लोग भी इतनी जल्दी हादसा भूल गए और अगली बारी की तैयारी में जुटे दिखे. अब मास्क नहीं लगाएंगे और ग्रुप में चिपक कर चलेंगे, भीड़ में डुबकी लगाएंगे और पानी छपकेंगे तो कोरोना विषाणु तो संक्रमित करने से नहीं चूकेगा.
 
रही बात कुंभ मेला अवधि सीमित करने की तो मेला प्रशासन हो कि गंगा पुरोहित सभा या साधु संन्यासी की सुरक्षा में जुटे अर्धसैनिक बल या पुलिस वाले या फिर आम भाविक श्रद्धालु सबका एक ही जवाब बारह साल में आता है ये पर्व. चार महीने की पारंपरिक अवधि को एक महीना कर दिया अब इसमें भी कटौती? कोरोना वोरोना तो आते जाते रहेंगे. संस्कृति की गंगा बहती रहनी चाहिए.

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लोगों ने खुलकर कहा कि मीडिया कुंभ की भीड़ और लापरवाही पर तो सवाल उठाता है लेकिन चुनावी राज्यों में बिना मास्क वाले वोटर न तो नेताओं को दिखाई देते हैं और ना ही नौकरशाहों को. आखिर ये माजरा क्या है?
 

20 अतिरिक्त जांच टीमेंः CMO 

लेकिन लोगों की बात भी तो सच ही है. आखिर निर्वाचन आयोग ने भी तो चार चरण मतदान के बाद सख्ती की. पहले तो जो होना था वो हो लिया. अब नतीजे वहां के तो आएंगे जहां चुनाव हुए. नतीजे वहां भी आएंगे जहां चुनाव नहीं कुंभ हुआ. 

हरिद्वार के सीएमओ डॉक्टर शंभू कुमार झा का कहना है कि एहतियात बढ़ाते हुए 20 अतिरिक्त जांच टीमें लगाई गई हैं. करीब दो सौ संन्यासियों की गुरुवार को हुई आरटी-पीसीआर जांच रिपोर्ट का इंतजार है. सभी अखाड़ों और मेला क्षेत्र में लोगों की औचक सैंपल जांच बढ़ा दी गई है.
 
तो वहीं मेला अधिकारी दीपक रावत का कहना है कि अब भीड़भाड़ कम होने से कोरोना प्रोटोकॉल पर सख्ती फिर से लागू कर दी गई है. मास्क और सामाजिक दूरी पर जोर ज्यादा है. मुख्य शाही स्नान तक अतिरिक्त सुरक्षा बल की तैनाती में आधी कमी कर दी गई है लेकिन लोगों पर निगरानी रखने के लिए समुचित संख्या में पुलिस बल की तैनाती अभी भी जारी है. 

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