समाजवादी पार्टी (सपा) के गढ़ माने जाने वाले संभल लोकसभा सीट एक समय मुलायम सिंह यादव का संसदीय क्षेत्र होने के कारण सुर्खियों में रहता था, लेकिन इस बार मुकाबला कांटे का होने जा रहा है क्योंकि मुस्लिम बहुल इलाका होने के बावजूद 2014 के चुनाव में इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी और उसकी कोशिश अपनी इस सीट पर पकड़ बनाए रखना चाहेगी तो बसपा के साथ गठबंधन करने वाली सपा फिर से यहां पर जीत हासिल करना चाहेगी.
संभल लोकसभा सीट पर इस बार 12 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी के परमेश्वर लाल सैनी, समाजवादी पार्टी के डॉक्टर शफीकुर रहमान बार्क और कांग्रेस के मेजर जगत पाल सिंह के बीच रहेगा. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के करण सिंह यादव भी मैदान में हैं. 3 निर्दलीय समेत 5 क्षेत्रीय दलों के नेता भी अपनी उम्मीदवारी पेश कर रहे हैं.
1977 में अस्तित्व में आई संभल सीट
संभल लोकसभा सीट 1977 में अस्तित्व में आई, इमरजेंसी के बाद देश में पहली बार चुनाव हुए और तब यहां से चौधरी चरण सिंह की पार्टी ने जीत दर्ज की. उसके बाद 1980 और 1984 में लगातार कांग्रेस फिर 1989 और 1991 में जनता दल ने ये सीट जीती. 1996 में बाहुबली डीपी यादव ने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर इस सीट पर कब्जा किया.
1998 में ये सीट वीआईपी सीटों की गिनती में आ गई जब तत्कालीन समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की. इसके बाद 1999 में भी वह यहां से चुनाव जीते. 2004 में उनके भाई प्रोफेसर रामगोपाल यादव यहां से सांसद चुने गए, लेकिन 2009 में बहुजन समाज पार्टी ने यहां से जीत हासिल की.
रामपुर, अमरोहा और मुरादाबाद जैसी सीटों से सटी हुई संभल लोकसभा में भी मुस्लिम वोटरों का वर्चस्व है. यही कारण रहा कि भारतीय जनता पार्टी के लिए ये सीट मुश्किल मानी जाती थी, लेकिन 2014 में बीजेपी ने यहां फतह हासिल की. संभल में कुल 16 लाख से अधिक वोटर हैं, इनमें करीब नौ लाख पुरुष और 7 लाख महिला हैं.
2014 के लोकसभा चुनाव में संभल में 62.4 फीसदी मतदान हुआ था. मुस्लिम बहुल इस सीट पर मुकाबला कांटेदार रहा था. भारतीय जनता पार्टी के सत्यपाल सैनी और समाजवादी पार्टी के शफीक उर रहमान बर्क के बीच जीत-हार में सिर्फ 5,000 वोटों का अंतर था. बहुजन समाज पार्टी के अकील उर रहमान खान तीसरे नंबर पर रहे थे. तब राजनीतिक पंडितों का मानना था कि सपा और बसपा में यहां मुस्लिम वोट बंट गए थे, यही कारण रहा कि बीजेपी को फायदा मिला और वह जीत गई थी. हालांकि इस बार सपा और बसपा मिल गए हैं और साथ में चुनाव लड़ रहे हैं, ऐसे में बीजेपी के लिए इस बार लड़ाई आसान नहीं होने वाली है.
संभल लोकसभा के अंतर्गत कुल 5 विधानसभा सीटें (कुन्दरकी, बिलारी, चंदौसी, असमोली और संभल) आती हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ चंदौसी विधानसभा ही भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई थी, जबकि अन्य सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा.
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