हम अब तक की अपनी कुल जमा यादों से बने हैं. इसीलिए जब हम पर्दे पर कोई लोरी देखते सुनते हैं, तो मां की चूड़ियों के स्वर पर सजी थपकियां याद आ जाती हैं. उसके आंचल के झुरमुटे से दिखते चांद तारे नाइट लैंप का काम करते थे तब. कुछ यंग प्रफेशनल्स के एक ग्रुप इमोशनल फुल्स ने ऐसी ही कुछ यादों को, जो ज्यादा दुनियावी हैं, एक साथ जोड़कर एक वीडियो बनाया है. इसका शीर्षक है, वो दिन, ए ट्रिब्यूट टु 90.
इसमें नब्बे के दशक की उन तमाम हरकतों, आदतों और तस्वीरों को एक लड़ी में पिरोया गया है, जो हिंदुस्तान में पले बढ़े हम सब लोगों के याद शहर के पते हैं. यहां सचिन की सेंचुरी से पहले की हम सबकी गुणा भाग है. डाकिया काका से जलेबी की बात सुन रूठे बच्चे का घर लौटना है. क्लास में चुपके से खेला जाता बुक क्रिकेट है. कई घरों में साझा होता एक टेलिफोन नंबर है और फ्रंड रिक्वेस्ट का लिखित वर्जन भी.
10 फरवरी को पब्लिश किए गए इस वीडियो को यू ट्यूब पर अब तक छह लाख 26 हजार से भी ज्यादा लोग देख चुके हैं. बहुत संभावना है कि अब तक आपकी फेसबुक वॉल पर भी इस वीडियो का लिंक किसी दोस्त के जरिए नमूदार हो चुका होगा.
इसे बनाने वाले इमोशनल फुल्स ग्रुप के फेसबुक पेज का इंट्रोडक्शन कुछ यूं है- हम लोग इस फलसफे में यकीन करते हैं कि जिंदगी के असल मायनों को संजोने से ज्यादा सुकून बख्श कुछ नहीं हो सकता. हम असल जिंदगी से प्रभावित और प्रेरित होकर कुछ शॉर्ट फिल्में बनाते हैं.
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