एक कथा के अनुसार लंका चढ़ाई के समय समुद्र मंथन के दौरान सुरक्षा का जिम्मा वीर हनुमानजी को सौंपा गया था. हनुमानजी रात में भगवान राम का ध्यान करते हुए पुल की रक्षा कर रहे थे कि वहां शनिदेव आ पहुंचे और उन्हें व्यंग्यबाणों से परेशान करने लगे.
हनुमानजी ने शनिदेव की सारी बातों को सुना लेकिन शांत भाव से कहा कि कृप्या वह उन्हें पुल की रक्षा करने दें, लेकिन शनिदेव ने नहीं माना. ऐसे में क्रोधित होकर हनुमानजी ने शनिदेव को अपनी पूंछ में जकड़ कर इधर-उधर पटकना शुरू कर दिया.
काफी देर बाद हनुमानजी ने उन्हें मुक्त किया और दर्द से निजात पाने के लिए एक तेल लगाने को दिया. इसके बाद से ही शनिदेव को तेल चढ़ाते हैं.