सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66A को निरस्त कर दिया है. ऐतिहासिक फैसले सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस विवादास्पद प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया. पहले इस कानून के तहत कथित रूप से अपमानजनक विवरण वेबसाइट्स पर पोस्ट करने पर व्यक्ति को पुलिस गिरफ्तार कर सकती थी.
SC ने रद्द की IT एक्ट की धारा 66-A
इस कानून का इस्तेमाल कई बार हुआ है. खासकर इंटरनेट पर आलोचनात्मक व विपरीत राजनीतिक विचारधारा के पोस्ट करने के कारण कइयों को गिरफ्तार किया गया है. हाल ही में उत्तर प्रदेश में 11वीं क्लास के एक छात्र को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उसने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में सांप्रदायिक वारदातों को आजम खान से जोड़कर बताया था.
आपको बता दें कि आईटी एक्ट को 2000 में पास किया गया था. पर उस वक्त विवादास्पद धारा 66(A) को शामिल नहीं किया गया था. 2008 में इस एक्ट में संशोधन करके धारा 66(A) को जोड़ा गया जो फरवरी 2009 में लागू हो गया.
यह धारा इलेक्टॉनिक डिवाइसेज पर आपत्तिजनक कंटेट पोस्ट करने के संबंध में है. इसके तहत दोषियों को तीन साल की जेल या 5 लाख रुपये का जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान है.
धारा 66A में लिखा है....
"कोई शख्स जो कंम्प्यूटर या फिर कम्युनिकेशन डिवाइस के जरिए भेजता है''
1) कोई भी ऐसी सूचना जो आपत्तिजनक हो या फिर जिसका मकसद चरित्रहनन का हो.
2) कोई भी सूचना जो झूठी है, पर इलेक्टॉनिक डिवाइसेज के जरिए उस सूचना का इस्तेमाल किसी शख्स को परेशान करने, असुविधा पहुंचाने, खतरा पैदा करने, अपमान करने व चोट पहुंचाने के लिए किया जाए.
3) कोई भी इलेक्ट्रॉनिक मेल या इलेक्ट्रॉनिक मैसेज, जिसके जरिए किसी को व्यर्थ परेशान करने या उसके लिए समस्याएं बढ़ाने के लिए किया जाए. तो ऐसा करने वाले शख्स को जेल भेजा जाएगा. दोषी को दो-तीन साल की सजा हो सकती है साथ में जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
यदि कोई व्यक्ति ऐसा करते हुए पाया जाता है तो पुलिस उसे 66A के तहत गिरफ्तार कर उसे कोर्ट में पेश कर सकती है. इसके साथ ही उस पर संबंधित मामले में उपयुक्त अन्य धाराएं जोड़ कर भी मुकदमा चला सकती है.