देश में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है और ज्यादातर सरकारें युवाओं को रोजगार देने की बातें करती हैं, लेकिन वे अपने इस वादे को पूरा करने में नाकाम रहती हैं. खास बात यह है कि मोदी राज में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर जमकर बात की जा रही है, खासकर मुस्लिम समाज को लेकर. असल में देखा जाए तो बेरोजगारी का आलम हर ओर है चाहे वो पुरुषों के साथ हो या महिलाओं के साथ, या फिर शहरी-ग्रामीण क्षेत्र हो या फिर किसी भी मजहब का हो.
अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से एक सवाल के जवाब में 2 दिन पहले पीरीआडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) 2017-18 की रिपोर्ट लोकसभा में पेश की गई जिसमें देश के 4 बड़े धर्मों (हिंदू, मुसलमान, सिख और ईसाई) के बीच रोजगार के मामले में खासी असमानता नजर आई. मंत्रालय की ओर से पेश रिपोर्ट के अनुसार पूरे भारत में बेरोजगारी ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में ज्यादा है.
शहरी क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति खराब
नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) ने 2017 में राष्ट्रीय स्तर पर लेबर फोर्स सर्वे के लिए पीरीआडिक लेबर फोर्स सर्वे की शुरुआत की थी. पीएलएफएस की ओर से यह सर्वे जुलाई 2017 से लेकर जून 2018 के बीच कराई गई. अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने एक सवाल के जवाब में जानकारी दी थी कि शहरी इलाकों में महिलाओं की रोजगार की स्थिति बेहद खराब है और राष्ट्रीय औसत के साथ-साथ सभी चारों धर्मों की महिलाओं की बेरोजगारी की स्थिति 10 फीसदी से ज्यादा है.
बेरोजगारी के मामले में ओवरऑल भारत की स्थिति पर नजर डाली जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में 5.8 फीसदी पुरुषों के पास काम नहीं है, जबकि ग्रामीण इलाकों में 3.8 फीसदी महिलाएं रोजगार की तलाश में हैं. इसी तरह शहरी क्षेत्रों में 7.1 फीसदी पुरुषों और 10.8 फीसदी महिलाओं के पास कोई काम नहीं है और वो बेरोजगार हैं.
बंगाल में रोजगार के लिए प्रदर्शन कर रहे युवाओं पर आंसू गैस छोड़ती पुलिस (फाइल-IANS)राष्ट्रीय औसत से कम हिंदू बेरोजगार
धर्म के आधार पर देखा जाए तो हिंदू धर्म से ताल्लुक रखने वाले लोगों में बेरोजगारी की दर देश के औसत से कम है. ग्रामीण क्षेत्रों में 5.7 फीसदी पुरुष और 3.5 फीसदी महिलाएं बेरोजगार हैं जबकि शहरी क्षेत्रों में 6.9 फीसदी पुरुष और 10.0 फीसदी महिलाओं के पास कोई काम नहीं है.
मुस्लिम और ईसाई ज्यादा बेरोजगार
हिंदू धर्म मानने वालों की बेरोजगारी का दर राष्ट्रीय औसत से कम है, लेकिन इसके बाद सिख धर्म के लोगों का नंबर है. जबकि इस्लाम और ईसाई समाज के लोगों में बेरोजगारी की दर राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है. सिख समुदाय से शहरी क्षेत्रों से 7.2 फीसदी पुरुष और 16.9 फीसदी महिला बेरोजगार हैं. जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 6.4 फीसदी पुरुष और 5.7 फीसदी महिलाएं बेरोजगार हैं.
ईसाइयों की स्थिति सबसे खराब
देश के 4 प्रमुख धर्मों में रोजगार को लेकर सबसे खराब स्थिति ईसाइयों की है, जबकि मुसलमानों में रोजगार की दर उनसे ज्यादा है. शहरी क्षेत्रों में इस्लाम धर्म से ताल्लुक रखने वालों में 7.5 फीसदी पुरुष और 14.5 फीसदी महिलाएं बेरोजगार हैं तो ग्रामीण क्षेत्रों में यह स्थिति क्रमशः 6.7 और 5.7 फीसदी है.
ईसाई समाज से जुड़े लोगों के बारे में बात करें तो शहर और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में इनकी स्थिति खराब है और दर राष्ट्रीय औसत से कम है. शहरी क्षेत्रों में 8.9 फीसदी ईसाई पुरुष और 15.6 महिलाएं तो ग्रामीण क्षेत्रों में क्रमशः 6.9 फीसदी और 8.8 फीसदी पुरुष और महिलाएं बेरोजगार हैं.
शहर के युवा ज्यादा बेरोजगार
देश में रोजगार की स्थिति अपने सबसे खराब दौर में है. शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में ईसाई पुरुषों की स्थिति अन्य धर्मों की तुलना में खराब है और यह दर क्रमशः 8.9 फीसदी और 6.9 फीसदी है. जबकि शहरी क्षेत्रों में सिख समाज से जुड़ी महिलाएं सबसे ज्यादा बेरोजगार हैं और यह 16.9 फीसदी है.
दूसरी ओर, देश में बेरोजगारी की दर पिछले 4 दशकों में सबसे ज्यादा है और मिनिस्ट्र ऑफ स्टैटेटिक्स एंड प्रोग्राम इम्पीमेंटेशन (MoSPI) के अनुसार बेरोजगारी की दर शहरी युवाओं में सबसे ज्यादा है, खासकर 15 से 29 साल के बीच के युवाओं में बेरोजगारी दर ज्यादा है.
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