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त्रिपुरा में चुनाव प्रचार थमा, क्या BJP का राज्य में खाता खुलेगा?

त्रिपुरा में चुनाव प्रचार अब थम गया है, यह चुनाव बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए खास है क्योंकि कांग्रेस 46 साल बाद सत्ता में वापसी चाह रही है तो बीजेपी अपना खाता खोलने को बेताब है.

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त्रिपुरा में भाजपा का समर्थन करती आदिवासी महिला
त्रिपुरा में भाजपा का समर्थन करती आदिवासी महिला

त्रिपुरा में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए शुक्रवार शाम को चुनाव प्रचार थम गया. चुनाव प्रचार के अंतिम दिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने त्रिपुरा में जनसभा की जबकि एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस राज्य का दौरा किया था और अपनी पार्टी के पक्ष में लोगों से मतदान करने का आह्वान किया.

पूर्वोत्तर भारत के 3 राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं जिसमें त्रिपुरा में 18 फरवरी यानी रविवार को मतदान होने हैं जबकि नगालैंड और मेघालय में 27 फरवरी को मतदान होगा. तीनों राज्यों में मतगणना 3 मार्च को की जाएगी. तीनों ही राज्यों में 60-60 सदस्यीय विधानसभा है.

माणिक सरकार के नेतृत्व में त्रिपुरा में पिछले 2 दशक से मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की सरकार है और केंद्र में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी पूरी कोशिश में है कि पूर्वोत्तर भारत में असम के बाद कुछ अन्य राज्यों में भगवा सरकार सत्ता में आ जाए. इस बार राज्य में सत्तारुढ़ की मुख्य लड़ाई बीजेपी से है. त्रिपुरा ने केरल (93.91 प्रतिशत) को पीछे छोड़कर 94.65 फीसदी साक्षरता दर हासिल की है.

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42 साल पुराना सत्ता में वापसी का इंतजार

कांग्रेस की कोशिश है कि वह त्रिपुरा में अपना लंबा वनवास इस बार तोड़ने में कामयाब हो जाए. पार्टी के नए अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार के अंतिम दिन उनाकोटी जिले में एक जनसभा को संबोधित किया. अपने भाषण में उन्होंने मणिक सरकार पर आरोप लगाया कि उसने राज्य में विकास को रोके रखा. साथ ही उन्होंने बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी पर भी अपना निशाना साधा.

चुनाव की खास बात यह है कि 1998 से मणिक सरकार की अगुवाई में वाम दल सत्ता में है जबकि बीजेपी ने तब से लेकर अब तक हुए 4 विधानसभा चुनावों में अपना खाता भी नहीं खोल सकी है. मोदी की पार्टी पर राज्य में खाता खोलने के साथ-साथ सत्ता तक पहुंचने के लिए उसे पूर्ण बहुमत की दरकार रहेगी.

जबकि वामपंथ के गढ़ वाले राज्य में बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस को भी अच्छा परिणाम पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी. कांग्रेस इस राज्य में आखिरी बार 1972 में चुनाव जीतकर सत्ता में वापस आई थी. इससे पहले 1967 में भी चुनाव जीता था. इन दो चुनावों के बाद राज्य में लगातार वामदल ही सत्ता में रही है.

5 साल में बदल गई बीजेपी

अपने चार दशक के सियासी करियर में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने पिछले 20 साल में जितनी चुनावी लड़ाइयां लड़ी हैं, उसमें 2018 का चुनाव सबसे अलग है. उन्होंने खुद ही स्वीकार किया है कि इस बार 25 साल से सत्तारूढ़ वाम मोर्चे को चुनौती परंपरागत प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस से नहीं, बल्कि बीजेपी से मिल रही है.

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यह वही बीजेपी है जो 2013 के चुनाव में 50 सीटों पर लड़ी और 49 में जमानत गंवा बैठी थी.,लेकिन पांच साल बाद उसी पार्टी ने चुनाव में 'चलो पलटई' (आओ बदलें) नारे के साथ अपनी महत्वाकांक्षाएं जाहिर कर दी और कड़ी चुनौती पेश की.

फिलहाल त्रिपुरा विधानसभा में बीजेपी के जो 6 सदस्य हैं वो दूसरी पार्टी से आए विधायक हैं. जून 2016 में कांग्रेस के 6 विधायकों ने पार्टी से इस्तीफा देकर ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस पार्टी को ज्वाइन कर लिया. लेकिन ये विधायक ज्यादा समय तक इस नई पार्टी के साथ नहीं जुड़े रहे. 2017 में अगस्त की 7 तारीख को संदीप रॉय बर्मन की अगुवाई में 6 विधायक बीजेपी के साथ जुड़ गए.

2013 विधानसभा चुनावों में बीजेपी को महज 1.54 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन दो साल बाद स्थानीय निकाय चुनावों में उसकी वोटों में हिस्सेदारी 14.7 फीसदी हो गई. 5 साल पहले पार्टी के सदस्यों की संख्या बमुश्किल हजार के आसपास थी लेकिन अब 2 लाख के पार हो गई है. राज्य की कुल आबादी 36 लाख के करीब है.

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