ऐसी मान्यता है कि जब रावण को भगवान राम का आखिरी बाण लगा, तब मरते वक्त रावण के मुंह पर 'श्रीराम' का नाम आ गया था. अब कलयुगी रावण की तस्वीर थोड़ी अलग है. आखिरी वक्त करीब देखकर 'इन्द्रदेव' के कोप से बचने के लिए इस रावण को बस शेल्टर की याद आई.
खैर, इस कलयुग में जब रावण का पुतला जलाने की रस्म अदा करने वाली भीड़ में ही राम जैसी मर्यादा नहीं बची, तो भला रावण के पुतले में बल कहां से शेष रह जाएगा? सो अपनी करनी पर पानी-पानी होने की बजाए वह पानी की बौछार से ही घबरा गया. यही वजह है कि दिल्ली में थोड़ी-सी वर्षा होने पर भी कलयुगी रावण और उसके सगे-संबंधियों को सड़क के किनारे बने बस शेल्टर में आना पड़ा.
रावण के मन में शायद ऐसे विचार आ रहे होंगे कि इसी दिल्ली में रात के अंधेरे में चलती बस में कैसी घिनौनी वारदात हुई, फिर क्या हुआ? लोग आंदोलन के लिए जमा हुए, नारेबाजी की, कसमें खाईं, मोमबत्तियां जलाईं, फिर सबकुछ भूल-भालकर चल पड़े पुराने ढर्रे पर...
रावण यह सोचकर राहत की सांस ले रहा होगा कि भले ही लोग उसके पुतले को हर साल जलाएं, लेकिन कलयुगिया मानव के दिलोदिमाग में उस जैसा दानव हमेशा ही जिंदा रहेगा. बात भी सच है. हम बार-बार रावण जलाते हैं, फिर भी वह अगले साल नई सज-धज के साथ फिर हाजिर हो जाता है. अगर अंदर का रावण मर जाए, तो बाहर उसे जलाने का दिखावा करना ही न पड़े.