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मध्यप्रदेश में बढ़ा संतान के लिये पराई कोख अपनाने का चलन

मध्यप्रदेश में पराई कोख की मदद से संतानहीनता की समस्या से निपटने का चलन बढ़ रहा है. समाज की रूढ़ मान्यताओं और नैतिक सवालों को दरकिनार करके देश-विदेश के बेऔलाद दंपति खासतौर पर कम किराये वाली पराई कोख की तलाश में प्रदेश का रुख कर रहे हैं.

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मध्यप्रदेश में पराई कोख की मदद से संतानहीनता की समस्या से निपटने का चलन बढ़ रहा है. समाज की रूढ़ मान्यताओं और नैतिक सवालों को दरकिनार करके देश-विदेश के बेऔलाद दंपति खासतौर पर कम किराये वाली पराई कोख की तलाश में प्रदेश का रुख कर रहे हैं.

इसके साथ ही, उन महिलाओं की तादाद में भी इजाफा हो रहा है जो अपनी आर्थिक जरूरतें पूरी करने के लिये सरोगेट मां बनने को तैयार हैं.

प्रजनन और संतानहीनता से जुड़े रोगों के विशेषज्ञ डॉ- दिनेश जैन ने बताया, ‘प्रदेश में सरोगेसी का चलन पिछले कुछ साल से बढ़ रहा है. लोग पहले के मुकाबले आर्थिक और मानसिक तौर पर आज ज्यादा मजबूत हैं. वे संतान की चाह में समाज की रूढ़ मान्यताओं को पूरी ताकत से खारिज कर रहे हैं.’

डॉ जैन कहते हैं, ‘यूरोपीय देशों के मुकाबले भारत में सरोगेसी का खर्च पांच से छह गुना कम है. दूसरे, इन देशों में सरोगेट मां मिलना काफी मुश्किल है, क्योंकि वहां की ज्यादातर महिलाओं के लिये अपनी आधुनिक जीवनशैली के चलते सरोगेसी अनुबंध की कड़ी शर्तों का पालन करना मुश्किल है.’

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उन्होंने बताया कि प्रदेश में ऐसी महिलाओं की तादाद पहले के मुकाबले बढ़ी है, जिन्हें अपनी आर्थिक जरूरतें पूरी करने के लिये सरोगेट मां बनने से परहेज नहीं है.

जानकार सूत्रों ने बताया कि सरोगेसी के मामले में प्रदेश में इंदौर एक बड़ा गढ़ है. पश्चिमी भारत के इस शहर में देश-विदेश के लोग अपना वंश बढ़ाने के लिये सरोगेट मां की तलाश में आ रहे हैं. इनमें अनिवासी भारतीय शामिल हैं.

सूत्रों के मुताबिक प्रदेश में सरोगेसी के एक मामले में आईवीएफ :इनव्रिटो फर्टिलाइजेशन: सेंटर बेऔलाद दंपति से चार लाख रुपये या इससे ज्यादा वसूल सकते हैं. हालांकि इसमें सरोगेट मां को कितनी रकम मिलेगी, यह उसकी आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है. नि:संतान दंपतियों के लिये सरोगेसी भले ही किसी वरदान से कम नहीं हो, लेकिन इससे जुड़े कुछ कानूनी, नैतिक और भावनात्मक पहलुओं पर बहस लगातार जारी है.

सरोगेसी मामलों से जुड़े वकील पीयूष जैन मानते हैं, ‘इन प्रकरणों के लिये पूरी तरह मजबूत कानून बेहद जरूरी है, ताकि कुछ पेचीदगियों को बेहतर तरीके से सुलझाया जा सके.’ उन्होंने कहा कि सरोगेसी सुविधा मुहैया कराने वाले क्लिनिकों पर स्वास्थ्य विभाग को बराबर निगाह रखनी चाहिये, ताकि पता चल सके कि वे इस संदर्भ में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे हैं या नहीं.

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