सुप्रीम कोर्ट ने तलाक से संबंधित एक नई व्यवस्था पर मुहर लगाई है. इसके तहत लंबे समय तक जीवनसाथी को शारीरिक संबंध बनाने की अनुमति नहीं देना मानसिक क्रूरता है और यह तलाक का आधार हो सकता है.
जज एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस बाबत अपने फैसले में कहा, 'नि:संदेह, जीवनसाथी को पर्याप्त कारणों के बगैर ही लंबे समय तक यौन संसर्ग नहीं करने देना मानसिक क्रूरता जैसा है.' कोर्ट ने इस व्यवस्था के साथ ही मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को भी सही ठहराया, जिसने एक व्यक्ति को इसी आधार पर तलाक की अनुमति दे दी थी.
हाई कोर्ट में व्यक्ति ने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी सेक्स संबंध बनाने से इनकार करने के अलावा कई अन्य तरीकों से उसके साथ क्रूरता कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में पत्नी की उस गवाही को तवज्जो देने से इनकार कर दिया, जिसमें उसने कहा कि वह संतान नहीं चाहती थी इसलिए उसने शारीरिक संबंध बनाने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने लंदन में रह रहे पति को निर्देश दिया कि वह अपनी पत्नी को एकमुश्त 40 लाख रुपये बतौर निर्वाह खर्च दे.
हाई कोर्ट ने शारीरिक संबंध स्थापित नहीं करने के बारे में पत्नी के स्पष्टीकरण को भी अस्वीकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि पति-पत्नी दोनों ही शिक्षित हैं और ऐसे अनेक गर्भनिरोधक उपाय हैं, जिनका उपयोग करके वे गर्भधारण से बच सकते थे.