सुप्रीम कोर्ट ने गे-सेक्स को अपराध करार देने वाले अपने फैसले पर फिर से विचार करने से इनकार कर दिया है. शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तरफ से दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को यह फैसला सुनाया.
जस्टिस एच एल दत्तू और एस जे मुखोपाध्याय की बेंच ने इस बारे में फैसला किया कि दिसंबर 2013 में सुनाए गए फैसले पर फिर से विचार किया जाए या नहीं. सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले से समलैंगिक यौन रिश्तों के हिमायती कार्यकर्ताओं को तगड़ा झटका लगा है.
11 दिसंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में गे सेक्स को अपराध करार दिया था. इस अपराध के लिए उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर अमल पर रोक लगाने के लिए एनजीओ नाज फाउंडेशन समेत समलैंगिकों के अधिकार की लड़ाई लड़ने वाले संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की थी. इनका कहना है कि गे सेक्स को गुनाह घोषित करने से एलजीबीटी समुदाय के लोगों के मूल अधिकारों का उल्लंघन होता है.
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के एक फैसले को पलटते हुए निर्णय सुनाया था. जुलाई 2009 में हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में आपसी रजामंदी से समलैंगिक संबंध को जायज ठहराया था. कोर्ट ने अपने फैसले में आईपीसी की धारा 377 के उस प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया था जिसमें समलैंगिक संबंधों को आपराध माना गया है.