कांग्रेस नीत यूपीए सरकार की ओर से ओबीसी कोटे में जाटों को दिया गया आरक्षण सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है. गौरतलब है कि यूपीए सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में अधिसूचना लाकर ओबीसी कोटे में जाटों को आरक्षण दिया था. कोर्ट ने जाटों को ओबीसी में लाने वाली अधिसूचना रद्द कर दी है.
जाट आरक्षण पर याचिकाकर्ता ओमवीर सिंह ने कहा कि शीर्ष कोर्ट ने अपने आकलन में पाया कि जाटों को आरक्षण की जरूरत नहीं है. आरक्षण अगर सिर्फ जातिगत आधार पर केंद्रित है, तो वह स्वीकार नहीं होगा. आरक्षण जाति के साथ आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए होना चाहिए.
अपील करे एनडीए सरकारः हुड्डा
याचिकाकर्ता और वकील ओमवीर सिंह ने कहा कि यूपीए सरकार का यह बगैर तथ्यों के लिया गया निर्णय था. सिंह ने कहा कि कोर्ट के इस फैसले से ओबीसी समुदाय के लोगों का न्याय के प्रति भरोसा बढ़ा है.
SC has quashed the Jat notification of Jat reservation issued by previous govt: Om Veer Singh (Advocate) pic.twitter.com/bP1viiCj0m
— ANI (@ANI_news) March 17, 2015
कोर्ट के इस फैसले पर जाट नेता भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कहा कि एनडीए सरकार को इस फैसले के खिलाफ अपील करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि कोर्ट ने अपने फैसले से इस बात को भी जोड़ा कि आरक्षण के कोटे में जातियों को सिर्फ जोड़ा ही ना जाए बल्कि निकाला भी जाए.
ओमवीर सिंह ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि यह संविधान के द्वारा सोनिया गांधी के मुंह पर जोरदार तमाचा है. हालांकि जाट समुदाय ने कोर्ट के इस फैसले पर नाराजगी जताई है और दोबारा अपील की बात कही है.
मनमोहन सरकार का चुनावी फैसला
साल 2014 के मार्च में मनमोहन सिंह सरकार ने नौ राज्यों के जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी लिस्ट में शामिल किया था. इसके आधार पर जाट भी नौकरी और उच्च शिक्षा में ओबीसी वर्ग को मिलने वाले 27 फीसदी आरक्षण के हकदार बन गए थे.
मनमोहन सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं. मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार ने भी जाटों को ओबीसी आरक्षण की सुविधा दिए जाने के फैसले का समर्थन किया है. लोकसभा चुनाव से पहले 4 मार्च 2014 को किए गए इस फैसले में दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हिमाचल, बिहार, मध्य प्रदेश, और हरियाणा के अलावा राजस्स्थान (भरतपुर औरधौलपुर) के जाटों को केंद्रीय सूची में शामिल किया था.
इससे पहले ओबीसी रक्षा समिति समेत कई संगठनों ने कहा था कि ओबीसी कमीशन ये कह चुका है कि जाट सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े नहीं हैं, जबकि सरकार सीएसआईआर की रिपोर्ट का हवाला देती रही है.