छत्तीसगढ़ में CRPF के जवान अपने अफसरों से खुद के मानव अधिकारों के बारे में पूछ रहे हैं. बार-बार नक्सली हमलों से जवानों के मनोबल पर विपरीत प्रभाव तो नहीं पड़ा, लेकिन वो उन पर लग रहे मानव अधिकार के हनन के मामलों को लेकर पशोपेश में है. सुकमा में लगातार दूसरी बार नक्सलिओं ने CRPF के जवानों को जबर्दस्त जान-माल का नुकसान पहुंचाया है. नक्सलिओं ने ग्रामीणों की आड़ ले कर सुरक्षा बलों पर फायरिंग की थी. CRPF के जवान इसका माकूल जवाब तुरंत देना चाहते थे, लेकिन ग्रामीणों के मारे जाने के आशंका के चलते उन्होंने काफी देर बाद फायर किया. ताकि ग्रामीणों को तितर- बितर होने का मौक़ा मिले वरना उन पर फिर मानव अधिकारों के हनन की गाज गिरती.
CRPF के जवान मांग कर रहे है कि बस्तर में उन्हें स्पेशल पावर ऐक्ट दिया जाए. उधर CRPF के आईजी देवेंद्र सिंह चौहान की दलील है कि बस्तर में पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानों के मानव अधिकारों की रक्षा के प्रयास होने चाहिए. उनके मुताबिक जवान ही नहीं बल्कि आम नागरिकों को भी नक्सली मौत के घाट उतार रहे हैं. लेकिन दोनों के मानव अधिकारों को लेकर कोई बात नहीं होती है. जबकि पूछतांछ के लिए ही सही नक्सलिओं का साथ देने वाले ग्रामीणों को कब्जे में लिया जाता है तो कुछ संस्थान और उनके लोग अदालत का दरवाजा खटखटाने लगते हैं. सुरक्षा बलों पर मानव अधिकारों के हनन का आरोप भी लगता है और जांच भी होती है. लेकिन नक्सलिओं के खिलाफ कोई मुंह तक नहीं खोलता है.
रायपुर में CRPF के शहीद जवानों को केंद्रीय और राज्य के मंत्रियों समेत आला अधिकारियों ने अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए. गार्ड ऑफ ऑनर के बाद उन्हें अंतिम विदाई दी गई. वहीं दूसरी ओर सुकमा में उस खूनी सड़क पर पुलिस और CRPF के दूसरे दस्तों ने फिर अपने कदम बढ़ाना शुरू कर दिए. दोरनापाल से जगरगुंडा के बीच 56 किलोमीटर के मार्ग पर जंगलों के कई हिस्सों में नक्सलिओं की खोजबीन की जा रही है. हालांकि इस सड़क के ज्यादातर हिस्सों में वीरानी छाई हुई है. चिंतागुफा, चिंतलनार, दोरनापाल और जगरगुंडा से लेकर पोलमपल्ली, कांकेरलंका, तमिलवाड़ा और बुरकापाल को जोड़ने वाली ये वो सड़क है जहां हर पांच किलोमीटर पर सुरक्षा बलों के कैम्प हैं. पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान फूंक-फूंक कर इस सड़क पर अपने कदम रख रहें हैं. बुरकापाल में अभी भी खून के धब्बे दिखाई दे रहे हैं. शाहदत देने वाले CRPF के जवानों के खून से यहां की मिट्टी और पत्थर पर दिखाई दे रहें हैं. यही नहीं पेड़ों पर भी गोलियों के निशान साफ़ देखे जा सकते हैं.
नक्सलिओं ने कब-कब हमला किया
6 अप्रैल 2010 को इसी सड़क से सटे ग्राम चिंतागुफा में CRPF को जबरदस्त जानमाल का नुकसान उठाना पड़ा था. इस दौरान हुए नक्सली हमले में उसके 76 जवान शहीद हुए थे. जबकि छत्तीसगढ़ पुलिस के तीन जवानों की भी शाहदत हुई थी. इस घटना के बाद से इस सड़क पर खून की होली लगातार खेली जा रही है. 21 अप्रैल 2012 को इसी सड़क के दाहिने ओर के जंगल से नक्सलिओं ने सुकमा के तत्कालीन कलेक्टर एलक्स पॉल मेनन को अगवा किया था. उनके दो अंगरक्षकों को मौके पर ही गोली मार दी थी.
11 मार्च 2014 को कांकेरलंका से 20 किलोमीटर दूर टहकवाड़ा में CRPF पर नक्सलिओं ने हमला किया था. इस घटना में CRPF के 16 जवान शहीद हुए थे. सड़क पर डब्बा मरका में 4 मार्च 2016 को CRPF की कोबरा बटालियन के तीन जवान शहीद हुए थे. 11 मार्च 2017 को इसी सड़क के अंतिम छोर पर बसे कोट्टचेरु इलाके में नक्सलिओं ने खून की होली खेली थी. इस वारदात में CRPF के 12 जवान शहीद हुए थे. इस घटना को बीते अभी सवा महीना भी पूरा नहीं हुआ था कि एक बार फिर नक्सलिओं ने मौत की इस सड़क पर खूनी खेल खेला. स्थानीय ग्रामीणों के बीच छिप कर उन्होंने CRPF पर हमला बोल दिया. इस घटना में कुल 25 जवान शहीद हुए. सुकमा की ये अकेली वो सड़क है जिसके निर्माण के लिए पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों को सैकड़ों की तादाद में शाहदत देनी पड़ी है. इस घटना में जख्मी हुए CRPF के जवान शेर मोहम्मद ने बताया कि आखिर कैसे नक्सलिओं ने ग्रामीणों की आड़ ले कर उन पर हमला किया.
सुकमा हमले में घायलों का हाल जाने पहुंचे केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह राज्य मंत्री हंसराज अहीर और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह समेत आला अफसरों को CRPF के जवानों ने ग्रामीणों के व्यवहार को लेकर आपत्ति दर्ज कराई है. CRPF के कई जवानों ने अपने अफसरों को भी ताकीद किया है कि उनके मानव अधिकारों की रक्षा को लेकर पहल की जाए. ये जवान बस्तर में स्पेश्ल पवार ऐक्ट को लागू करने की भी मांग कर रहे हैं.