भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक सुभाष चंद्र बोस के जीवन के बारे में छाया रहस्य 68 साल बाद भी नहीं सुलझ पाया है. इतना ही नहीं आजादी की लड़ाई के लिए विदेशों में बसे भारतीयों से उन्हें दान में मिली करोड़ों रुपये की धन संपत्ति का भी कोई अता पता नहीं है.
23 जनवरी 1897 को जन्मे सुभाष चंद्र बोस के बारे में कहा जाता है कि 18 अगस्त 1945 को ताइवान की वायुसीमा में कथित विमान हादसे में उनकी मौत हो गई थी, लेकिन इस दावे में भी कई विरोधाभास सामने आए हैं.
सुभाष चंद्र बोस के जीवन पर पुस्तक लिखने वाले अनुज धर का कहना है कि सिर्फ नेताजी के बारे में ही नहीं, बल्कि आजादी की लड़ाई के लिए उन्हें विदेशों में रहने वाले भारतीयों से दान में मिली करोड़ों रुपये की संपत्ति का भी कोई पता नहीं है.
धर ने अपनी पुस्तक ‘इंडियाज बिगेस्ट कवर अप’ में आरोप लगाया है कि नेताजी की इस धन संपत्ति को देश के कुछ बड़े लोगों ने ‘लूट’ लिया और भारत सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की.
उन्होंने लिखा है कि तोक्यो में भारतीय मिशन के तत्कालीन प्रमुख और बाद में लंबे समय तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे सर बेनेगल रामा राव ने इस बारे में चार दिसंबर 1947 को भारत सरकार को सूचित किया था, लेकिन उन्हें कोई उत्साहजनक उत्तर नहीं मिला.
किताब में विदेश मंत्रालय के अति गोपनीय दस्तावेजों का हवाला देकर दावा किया गया है कि संपत्ति मामले को प्रकाश में लाने में एक और मिशन प्रमुख केके चेत्तूर की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर आजादी की लड़ाई के लिए विदेशों में बसे भारतीयों ने उन्हें करोड़ों रुपये की संपत्ति दान में दी थी. इसमें हीरे जवाहरात, सोना चांदी और नकदी शामिल थी.
धर ने कई गोपनीय दस्तावेजों और तस्वीरों के हवाले से दावा किया है कि नेताजी 1985 तक जीवित थे. नेताजी के बारे में बहुत से किस्से कहानियां प्रचलित हैं. कई साधु संतों ने खुद के नेताजी होने का दावा किया, लेकिन सच्चाई कभी साबित नहीं हो पाई. ताइवान सरकार अपना रिकॉर्ड देखकर यह खुलासा कर चुकी है कि 18 अगस्त 1945 को ताइवान के ऊपर कोई विमान हादसा नहीं हुआ था.
नेताजी के बारे में हुई जांचों से भी कोई सचाई सामने नहीं आई. ताइवान में कथित विमान हादसे के समय नेताजी के साथ जा रहे कर्नल हबीबुर रहमान ने आजाद हिन्द सरकार के सूचना मंत्री एस ए नैयर, रूसी तथा अमेरिकी जासूसों के समक्ष अलग अलग बयान दिए.
रहमान ने कभी कहा कि उन्होंने नेताजी के जलते हुए कपड़े उनके बदन से उतारे थे तो कभी अपने बारे में कहा कि वह तो खुद इस हवाई दुर्घटना में बेहोश हो गए थे और उन्हें ताइपै के एक अस्पताल में होश आया. कभी उन्होंने नेताजी के अंतिम संस्कार की तारीख 20 अगस्त तो कभी 22 अगस्त 1945 बताई.
रहस्य से पर्दा उठाने के उद्देश्य से देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा शाहनवाज खान के नेतृत्व में अप्रैल 1956 में बनाई गई जांच समिति ने विमान हादसे की बात को सच बताया था, लेकिन समिति में शामिल रहे नेताजी के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस ने इस रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया और आरोप लगाया कि सचाई जानबूझकर छिपाई जा रही है.
जुलाई 1970 में गठित न्यायमूर्ति जीडी खोसला आयोग ने भी शाहनवाज समिति जैसी ही रिपोर्ट दी. इसके बाद नेताजी के रहस्य के बारे में जांच के लिए तीसरा आयोग 1999 में गठित किया गया. इस मुखर्जी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में नेताजी की विमान हादसे में मौत को पूरी तरह खारिज कर दिया तथा मामले में और जांच की जरूरत बताई.
आठ नवम्बर 2005 को भारत सरकार को सौंपी गई मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट 17 मई 2006 को संसद में पेश की गई, लेकिन सरकार ने इस रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया.