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SC ने सरकार से पूछा- सोशल मीडिया लिंकिंग को लेकर कब तक आएगी गाइडलाइन

फेसबुक, ट्विटर समेत तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को आधार नंबर से लिंक करने के मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने सुना है कि सरकार सोशल मीडिया लिंकिंग को लेकर गाइडलाइन लेकर आ रही है. यह बहुत जरूरी है, लेकिन निजता का भी ख्याल रखा जाना चाहिए.

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

  • सोशल मीडिया अकाउंट को आधार से लिंक करने पर सुनवाई
  • आपत्तिजनक कंटेंट को कंट्रोल करने की योजना

फेसबुक, ट्विटर समेत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को आधार से लिंक मामले की आज मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है जिसमें कोर्ट ने कहा कि हमने सुना है कि सरकार सोशल मीडिया लिंकिंग को लेकर गाइडलाइन लेकर आ रही है. यह बहुत जरूरी है, लेकिन निजता का भी ख्याल रखा जाना चाहिए. इंटरनेट वाइल्ड वेस्ट की तरह है.

जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है. जस्टिस गुप्ता ने कहा कि कोर्ट के साथ सरकार और आईटी डिपार्टमेंट भी इसे देखे और समस्या का हल तलाशे. इस पर अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि आईआईटी के विशेषज्ञों की भी तकनीकी राय ली गई है.

कब तक आएगी गाइडलाइन

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हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ये जानना बहुत मुश्किल है कि मैसेज का मूल निर्माता कौन है? जस्टिस गुप्ता ने कहा कि हमने मीडिया में पढ़ा है कि सरकार कोई गाइडलाइन ला रही है. सरकार बता सकती है कि क्या गाइडलाइन कब तक आएगी? सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि काम चल रहा है, लेकिन अभी समय सीमा नहीं बताई जा सकती, लेकिन जनहित में सरकार ये काम कर रही है.

जस्टिस गुप्ता ने आगे कहा कि तकनीक के दुरुपयोग की वजह से ही कई लोग मुझे भी मोबाइल के सीमित इस्तेमाल की सलाह देते हैं. सरकार जितनी जल्दी हो इस बारे में कानून बनाए. ये तो होना चाहिए कि किसी ने आपत्तिजनक पोस्ट डाली तो उस तक पहुंचने का जरिया तो होना चाहिए ताकि सजा दी जा सके.

जस्टिस गुप्ता ने कहा कि देश में बहुत से तकनीकी जानकार और साइंटिफिक ब्रेन हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस इंस्टीट्यूट में हैं, लेकिन समिति में कौन हो ये हम/बेंच तय नहीं कर सकते. इस पर सिब्बल ने कहा कि यह सरकार तय करे. रोहतगी ने कहा कि श्रेया सिंघल मामले में कोर्ट की गाइडलाइन से काफी कुछ साफ कर चुका है. हाई कोर्ट का इससे कोई लेना देना नहीं. तमिलनाडु तय नहीं कर सकता कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल कैसे करें.

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कंटेंट कहां से आ रहे

इससे पहले सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अपनी दलील में कहा था कि सोशल मीडिया को आधार से जोड़ने से यह पता चलेगा कि सोशल मीडिया पर फेक न्यूज, अपमानजनक लेख, अश्लील सामग्री, राष्ट्र विरोधी और आतंक समर्थित कंटेट कौन डाल रहा है, क्योंकि अभी सरकार यह पता नहीं कर पा रही है कि ऐसे कंटेंट कहां से आ रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने 13 सितंबर को इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट से पूछा था कि यदि वह सोशल मीडिया खातों को आधार से जोड़ने के लिए किसी भी कदम पर विचार कर रही है तो इसकी क्या योजना है वो बताए. जस्टिस दीपक गुप्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार को अदालत को सूचित करने के लिए कहा कि क्या वह सोशल मीडिया को रेगुलेट करने के लिए कुछ नीति तैयार कर रही है.

सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी फेसबुक ने कहा है कि इस मामले से जुड़ी कई याचिकाएं देश के अलग-अलग उच्च न्यायालयों में दाखिल हुई है, फेसबुक ने कहा है कि इन सभी मामलों की सुनवाई एक साथ सुप्रीम कोर्ट में होनी चाहिए.

फेसबुक ने कहा है कि मामलों के हस्तांतरण से अलग-अलग हाईकोटों के परस्पर विरोधी फैसलों की संभावना से बचकर न्याय के हितों की सेवा होगी. फेसबुक ने बताया है कि अकेले मद्रास हाईकोर्ट में दो याचिकाएं और बॉम्बे हाईकोर्ट और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में क्रमश: एक-एक याचिकाएं दायर है. इन याचिकाओं में मांग की गई है कि आधार या सरकार द्वारा जारी किसी अन्य अधिकृत पहचान प्रमाण को सोशल मीडिया अकाउंट्स से जोड़ा जाना चाहिए.

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