माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने कठुआ गैंगरेप मामले में बीजेपी के रवैये पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई है. बलात्कारियों के पक्ष में निकली रैली में बीजेपी मंत्रियों के शामिल होने पर येचुरी ने कहा कि ये भगवा पार्टी का दोहरापन है. बिना आदेश के उनका कोई मंत्री कैसे ऐसी रैली में जा सकता है. ये तो उनकी संगठनात्मक परंपरा है.
'आजतक' से बातचीत में सीताराम येचुरी ने कहा, आरएसएस-बीजेपी से आदेश मिलने के बाद ही उनके दोनों मंत्री जम्मू में हिंदू एकता मंच की रैली में गए होंगे. असली सवाल है कि बीजेपी और पीडीपी मिलकर वहां पर सरकार में कैसे हैं? सत्ता के लालच में जो हालत बना दी है पूरे जम्मू और कश्मीर की, इतनी बुरी हालत आजादी के बाद कभी नहीं थी. मंत्रियों का इस्तीफा जरूर लिया जाए, लेकिन कार्रवाई भी करें क्योंकि वह इसी संविधान की शपथ लेकर मंत्री बने हैं.
Criminal cases must be filed against the two BJP ministers and office bearers of the Bar Association for obstruction of justice #Kathua#Unnao crime is a direct consequence of protection given to serious criminal offenders by BJP govt in UP: Full text: https://t.co/ZRdhJbbyTt
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) April 15, 2018
इस मामले में जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा क्राइम ब्रांच की जांच पर सवाल उठाने पर माकपा नेता ने कहा कि अगर बात सही है और कांग्रेस का आरोप सही है कि जितेंद्र सिंह जांच को प्रभावित कर रहे हैं, तो कार्रवाई होनी चाहिए. फौरन अपराधियों के ऊपर कार्रवाई होनी चाहिए.
कौन दे रहा अपराधीकरण को बढ़ावा
सीताराम येचुरी ने कहा, समाज में जो अपराधीकरण हो रहा है और समाज में बेइंसानियत जिस तरीके से बढ़ रही है, यह बिना सरकार के प्रोत्साहन के असंभव है. बीजेपी की सरकारें जो केंद्र केंद्र में हो या राज्यों में हों, इनके प्रोत्साहन के चलते ही इस तरह से अपराधीकरण बढ़ रहा है. उत्तर प्रदेश में यह साफ साफ नजर आ रहा है कि कितनी देर लगाई और हाई कोर्ट के कहने पर विधायक की गिरफ्तारी हुई. उन्होंने कहा कि अभी गुजरात में एक और बलात्कार का मामला आया है. यह हो क्या रहा है? सरकार क्या कर रही है.
न्यायपालिका में लागू हो आरक्षण
कोर्ट में दलितों के लिए आरक्षण की मांग पर सीताराम येचुरी ने कहा कि अदालत में दलितों की मौजूदगी ज्यादा होनी चाहिए. यह पुरानी मांग है. यह मांग इसलिए नहीं पूरी होनी चाहिए क्योंकि अदालत में कोई दलित नहीं है, बल्कि संविधान के आधार पर अदालत में जो फैसला होना चाहिए वह उसके अनुकूल होना चाहिए. एससी/एसटी एक्ट में बदलाव वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उन्होंने कहा कि सरकार को तुरंत पुनर्विचार याचिका दायर करनी चाहिए थी, लेकिन उसने इसमें काफी समय लगा दिया. अदालत में दलितों के समर्थ लोगों को पहुंचना चाहिए.