सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग की किस्मत अब चुनाव आयोग के हाथ में है. उन्होंने चुनाव आयोग से उनके इस पद पर बने रहने के लिए अपने अयोग्य ठहराए जाने की शेष अवधि को माफ करने का अनुरोध किया है. 27 मई को नियुक्त किए गए तमांग को अपनी नियुक्ति के छह महीने के भीतर विधानसभा के लिए चुने जाने की जरूरत है. हालांकि, भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी पाए जाने के बाद उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया गया है.
तमांग 1990 के दशक में पशुपालन मंत्री रहते हुए ‘गाय वितरण योजना’ में सरकारी धन के दुरुपयोग करने का दोषी पाए जाने के बाद 2017 से 2018 के बीच एक साल जेल में रहे. वह 10 अगस्त, 2018 को जेल से रिहा हुए. लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 के अंतर्गत, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत दोषी ठहराए गए और जेल में बंद लोगों को कारावास की अवधि के दौरान और रिहाई के छह साल बाद तक चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है.
हालांकि, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 11 चुनाव आयोग को अयोग्यता की अवधि को हटाने या कम करने की शक्ति देती है. अगर चुनाव आयोग प्रेम सिंह तमांग पर से प्रतिबंध हटाने से इनकार करता है तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना होगा. वहीं चुनाव आयोग तमांग के अनुरोध की जांच कर रहा है.
प्रेम सिंह तमांग (फाइल फोटो-IANS)
चुनाव आयोग ने पहले भी दोषी व्यक्तियों की अयोग्यता की अवधि को हटाने या कम करने के लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा-11 का इस्तेमाल कर चुका है. पिछले साल चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को एक हलफनामे में सूचित किया था कि साल 1977 में उसने उत्तर प्रदेश के दो विधायकों श्याम नारायण तिवारी और मित्रा सेन यादव को अपराधों के दोषी पाए जाने की अवधि कम कर दी थी.
सिक्किम में 11 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के साथ ही मतदान हुआ था. तमांग के सिक्किम क्रांति मोर्चा (एसकेएम) ने सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट को हराया, जिसने राज्य पर लगातार 5 बार शासन किया था. एसकेएम भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का सहयोगी है और केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा है.
तमांग के मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्ति को फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा रही है. सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के बिमल शर्मा ने इस मामले में कोर्ट में याचिका दी है जिसमें कहा गया है, ' जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में यह स्पष्ट है कि चुनाव आयोग गंभीर अपराधों में दोषी किसी व्यक्ति को चुनाव लड़ने या जनता के प्रतिनिधि के रूप में बने रहने के लिए अयोग्य ठहरा देता है. इस तरह के प्रतिबंध से आपराधिक तत्वों को सार्वजनिक पद पर बने रहने से रोकना जरूरी हैं.’