अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उत्थान के मकसद से कृषि भूमि खरीद योजना के लिए निर्धारित फण्ड को पूरी तरह उपयोग में न लाने के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
केंद्र और राज्य सरकारों को बताना है कि कितनी रक़म इस काम के लिए सुनिश्चित की गयी थी और कितनी रक़म खर्च हुई. जनहित याचिका में कहा गया है कि इस उद्देश्य के लिए केंद्र की तरफ से राज्यों को जारी किये गए बजट में से अब तक 2000 करोड़ रुपये खर्च तक नहीं किये गए और वो केंद्र को वापस लौटा दिए गए.
कृषि भूमि खरीद योजना के तहत अनुसूचित जाती और जनजाति के लोगों को लोन दिया जाता है ताकि वो कृषि भूमि खरीद सकें. याचिकाकर्ता सुधाकर भानुदास हिवाले ने आरटीआई के तहत अलग-अलग मंत्रालयों से जानकारी जुटाई और इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट में ये जनहित याचिका दायर की है. सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने बताया है कि;
-2012-13 में बजट 5012 करोड़ का था जिसमे से 131.93 करोड़ रूपये खर्च नहीं किये राज्यों ने.
-2013-14 में 5625 करोड़ बजट था जिसमे से 202.89 करोड़ रूपये राज्यों ने खर्च नहीं किये और ये रक़म केंद्र को लौटा दी गई.
-2014-15 में 5775 करोड़ का बजट था जिसमें से राज्यों ने 295.39 करोड़ की रकम लौटाई. इसी तरह ट्राइबल अफेयर्स मिनिस्ट्री ने जो डाटा दिया उसके मुताबिक:
#2012-13 में 4090 करोड़ का बजट तय किया गया जिसमें से 1033.32 करोड़ की रक़म राज्यों ने वापिस कर दी.
#2013-14 में 4279 करोड़ के बजट में से राज्यों ने 427.33 करोड़ की रकम लौटाई.
#2014-15 में 4479 का बजट एस्टीमेट था जबकि 648.40 करोड़ की रक़म राज्यों ने खर्च नहीं की.
दरअसल, केंद्र सरकार खुद ये योजना न चला कर राज्यों को इसके लिए पैसा देती है. राज्यों में एजेंसीज और कारपोरेशन को ये रक़म मुहय्या कराई जाती है जो आगे भूमिहीन ज़रूरतमंद लोगों को लोन देते हैं.
याचिका में कहा गया है कि राज्य इस योजना को पूरी तरह लागू नहीं कर रहे जिसकी वजह से काफी रकम केंद्र को वापिस चली जाती है. आंकड़ों के मुताबिक अनुसूचित जातियों में 2 करोड़ 32 लाख 72हज़ार 863 लोगों के पास कोई ज़मीन नहीं है. जबकि अनुसूचित जनजाति में 97 लाख 76 हज़ार 460 लोगों के पास अपनी ज़मीन नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट में ये मामला तब सुनवाई के लिए आया है जब केंद्र की मोदी सरकार को दलितों के साथ होने वाले अत्याचार के लिए विपक्ष की आलोचनाओं और हमलों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में देखना ये है की केंद्र और राज्य सरकारें अपने जवाब में क्या कहती हैं और क्या आंकड़ें पेश करती हैं.