जब-जब कहीं किसी ने दुनिया को बदल डालने वाली बात कही एकबारगी वो सबको बेतुकी ही लगी थी. न्यूटन के सिर पर सेब गिरा, सोचिये सेब के पेड़ के नीचे बैठने पर सिर पर सेब आ गिरने में कौन सा अजूबा था? सच में कोई बात तब होती जब सेब गिरने के बजाय हवा में गुलाटियां खाता. तमाम बड़ी बातों की एक खास बात रही है कि वो बड़ी आम सी होती हैं.
आर्किमिडीज ने देखा बाथटब में घुसने पर घुसते बराबर पानी बाहर छलक पड़ा. यूरेका चिल्ला पड़े. न्यूटन ने कहा कुछ ढंग से हो रहा है तो तब तक होगा जब तक आप उसके काम में टांग न अड़ाओ या किसी को ऊंगली करो वो बराबर पलट कर आपको भी ऊंगली करेगा. किसे ये पता नही था?
किसे ये नही पता था कि यूरिन में यूरिया होता है और यूरिया फसल के लिए अच्छा होता है, लेकिन कैबिनेट मंत्री नितिन गड़करी ने जब ये बात कह दी तो कुछ तो क्रांतिकारी होना ही था. नितिन गड़करी मोदी सरकार के लिए उपयुक्त मंत्री हैं. प्रधानमंत्री हर दफा कोई न कोई मूलमन्त्र देते हैं, इस दफा गड़करी जी ने मूत्रमन्त्र दे डाला. कल को नितिन गड़करी प्रधानमंत्री हुए तो जरुर मन की बात की बजाय मल की बात करते नजर आएंगे.
इसे हंसी में न टालिए पहली बार ऐसी सरकार आई है, जो संसाधनों का समुचित सदुपयोग करना चाहती है. मुस्कुराइए कि सुशासन के साथ सुसु-शासन वाले दिन भी आ रहे हैं. गड़करी की बात से हरकत में आए महाराष्ट्र सरकार के कृषि मंत्री एकनाथ खडसे ने तो खेती की उत्पादकता बढ़ाने के लिए मूत्र के इस्तेमाल की बात कह दी. महाराष्ट्र के तमाम सिनेमाघरों से मूत्र इकठ्ठा कर खेती में इस्तेमाल किया जाएगा और तो और जो किसान इस योजना के आधार पर खेती करने को तैयार हो जाएंगे उन्हें पैंतीस फीसदी सब्सिडी भी दी जाएगी. इस फैसले के बाद सबसे खुश अगर कोई है तो वो अजित पवार हैं, जिन्होंने खेती के लिए डैम खाली होने की शिकायत पर किसानों से पूछा था कि क्या वो स्वमूत्र से डैम भरें?
आज देखिए उनका कहा सच हो रहा है. खेती के लिए वही मूत्र काम आ रहा है. समय का फेर है और बात कहने के तरीके, जिस बात पर कोई कोसा गया हो उस पर दूसरा तालियां उठा सकता है. अपनी-अपनी किस्मत अपने-अपने बोल. कोई यूं ही सड़ता कोई बन गया ढोल. नजरिया बड़ा कर चौड़े में देखें तो गड़करी जी ने इस देश की नस पकड़ ली है, एक बार मूत्र से खेती प्रचलन में आ जाए मजाल है किसी दीवार पर ‘यहां पेशाब न करें’ लिखा नजर आये, ‘कूत के पूत यहाँ मत मूत’, ‘देखो कुत्ता मूत रहा है’, ‘यहाँ पेशाब करना मना है’ गुजरे जमाने की बातें हो पड़ेंगी.
‘प्रधानमंत्री स्वच्छ भारत अभियान के जरिए जितनी सफाई न कर पाए होंगे, गड़करी जी के एक बयान से हो जाएगी, देश की हर दीवार पर ‘कृपया यहां पेशाब करें’ लिखा नजर आएगा,खुले में पेशाब की लोगों की आदत ही जाती रहेगी. लोग घर की दीवारों के साथ एक गोला लगा रखेंगे, राह चलते जरूरतमंद हल्का होगा और घर की खेती लहलहाएगी. एक पंथ दो काज संवारे घाम लें और चीलर मारें.
कैसा समय होगा, नेताजी अपने जन्मदिवस पर डेढ़ सौ ग्राम मूत्रदान कर चमचा मंडली संग फोटो खिंचाएंगे, टीवी-रेडियो पर ‘मूत्रदान-महादान’ सरीखी कैची लाइंस बजेंगी. जनता देशहित में मूत्र त्याग करेगी, तय मात्रा से कम पेशाब करने वालों पर टैक्स लगेगा. बाप बेटे को कोसेगा, शर्मा जी के लड़के को देख तीसरी में है तुझसे ज्यादा सुसु करता है. कम पानी पीकर ज्यादा मूत्र त्याग करने वालों को इनाम-इकराम मिलेंगे. कुछ इसमें भी घपले करेंगे, पानी ज्यादा पिएंगे मूत्रत्याग कम करेंगे, जमाखोरी की आदत जाती नहीं न, तब मूत्र को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करवाना पड़ेगा.
मूत्र का भंडारण अवैध होगा. भारत गजब का देश है कुछ लोग तो बस खुले में इसलिए हलके हो जाते हैं ताकि सुलभ कॉम्प्लेक्स में जो देने पड़ते वो चिल्लर बचा सकें, ऐसे कंजूस लोग उन दिनों में दिनभर का मूत्र अपने गुर्दों में संभालकर रखेंगे, छूटते-छूटते भी न छूटने देंगे चवन्नी भर यूरिया का बट्टा जो लग जाएगा. अति की कंजूसी भी बुरी है, आदमी की यही बुराई क्रान्ति लाएगी, भारत सच में स्वच्छ होगा.