टिकट मिलने से परचा दाखिल करने और मतदान होने से नतीजे आने तक हर प्रत्याशी खुद को जीता हुआ ही मानता है. एग्जिट पोल भले उन्हें हारा बताएं लेकिन अंतिम नतीजा देख लेने तक वो किसी पर भरोसा नहीं करते.
इस बात पर ध्यान दीजिए कि वोट पड़ने के कुछ दिन बाद ही मतगणना क्यों होती है? क्योंकि ये वो समय होता है जब टॉन्सिलसुजाऊ स्वर में गगनभेदी नारे लगाने वाले अमुक से लेकर तमुक तक की दीवारों पर आटे की लेई से पर्चे चिपकाने वाले, भर-भर गाड़ी मतदाता ढोने वाले और रात-बिरात मुंह अंधियारे चदरा-मदिरा पहुंचाने वाले अपना हिसाब-किताब कर रहे होते हैं. एक नेता के पीछे लगाया हुआ वक्त और पैसा कभी नहीं डूबता बशर्ते पैसे लगाने वाला नतीजे आने के पहले हिसाब करने जा पहुंचे.
कभी सोचा क्या होता है जब प्रत्याशी हार जाए? अगर सोचा हो तो एक बात समझिए, चुनावों में कभी कोई हारता नहीं. हजार बातें होती हैं कहने को. नेता अगर चुनाव हारा है तो इसे वो विचारधारा की जीत बता सकता है जैसा कांग्रेस के लोकसभा चुनावों में हारने के बाद राज बब्बर ने इसे पार्टी की विचारधारा की जीत बताया था. फिर क्या था मतदाताओं ने अगले कई विधानसभा चुनावों में फिर उनकी विचारधारा को जिता दिया. इसके अलावा पुनर्गणना या पुनर्मतदान की मांग, ईवीएम में धांधली, बूथ कैप्चरिंग, प्रशासन की मिली-भगत और भी कई आक्षेप लगाए जा सकते हैं.
ज्यादा दुख चुनाव लड़कर हारने वाले को नहीं होता. पिछली बार जीतकर इस दफा हारने वाले को होता है. समझते हैं न कुछ दिन पालकर पुचकारना छोड़ तो तो उनका भी खाना बंद हो जाता है. चुनाव हारने के बाद पार्टी कार्यालय में अचानक उल्लू बोलने लगते हैं. पहले कभी ऐसा होता तो उसे कार्यकर्ता सम्मलेन कह दिया जाता लेकिन नेता के चुनाव हारते ही कार्यकर्ताओं की जिह्वा भी सन्निपात की अवस्था में चली जाती है. दो-एक मुंहलगे चमचों के साथ बैठे किसी हारे हुए नेता को देखने का सौभाग्य मिले तो देखिए मातमी मुर्दनी किसे कहते हैं.
पहला चमचा बुझे स्वर में कहे ‘जाने कमी कहां रह गई?’ उसके पहले दूसरा चहक उठेगा ‘चलो शुक्र है जमानत तो जब्त न हुई?’ नेताजी की आंखे अचानक खिल उठेंगी और वो बात बदलते हुए पूछेंगे ‘अच्छा वो दक्खिन टोला से कितने वोट मिले?’ पहला चमचा जेब से कागज निकाल हिसाब कर बताएगा कि सबसे ज्यादा वोट वहां आपको ही मिले तब तक खुशी-खुशी तीन कप चाय लाने का फरमान सुना दिया जाएगा.
अब सारी चर्चा सिर्फ इस मुद्दे पर जा
अटकेगी कि कहां कितने वोट काटे और कहां कितने कम रह गए. यकीन मानिए किसी हारे हुए के दिल को तसल्ली देने को इतना भी काफी होता है. दूसरे नंबर पर रहने
वाला मुकाबले में रहने पर खुश हो लेता है. तीसरे नंबर वाला ये सोचकर खुश हो लेता है कि कम से कम टॉप थ्री में है. कोई एक जमानत जब्त न होने पर ही खुश हो
लेता है. किसी की खुशी की वजह ये होती है कि कइयों को उससे भी कम वोट मिले. और कहीं कोई सबसे कम वोट पाने वाला ये सोच-सोचकर मुदित होता रहता है कि
एक बीवी और दूसरे उसके अलावा तीसरा कौन चाहने वाला उसे वोट कर गया?
(युवा व्यंग्यकार आशीष मिश्र पेशे से इंजीनियर हैं और इंदौर में रहते हैं.)