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नए मोड़ पर बिहार की सियासत, जनवरी के अंत तक RJD-JDU का हो सकता है विलय

बिहार के दो सियासी दिग्गज, नीतीश कुमार और लालू प्रसाद को एक-दूसरे का साथ पसंद आने लगा है. दोनों नेता कई दिनों से जनता दल परिवार को इकट्ठा करने में जुटे हुए हैं. इसके लिए मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी और जनता दल (सेक्युलर) जैसी कई पार्टियों के एक साथ विलय करने की बात कही जा रही है. खबर है कि इस कोशिश को अमलीजामा पहनाते हुए लालू प्रसाद की पार्टी आरजेडी और बिहार में सत्ताधारी जेडीयू का जनवरी के अंत तक विलय हो जाएगा.

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बिहार के दो सियासी दिग्गज, नीतीश कुमार और लालू प्रसाद को एक-दूसरे का साथ पसंद आने लगा है. दोनों नेता कई दिनों से जनता दल परिवार को इकट्ठा करने में जुटे हुए हैं. इसके लिए मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी और जनता दल (सेक्युलर) जैसी कई पार्टियों के एक साथ विलय करने की बात कही जा रही है. खबर है कि इस कोशिश को अमलीजामा पहनाते हुए लालू प्रसाद की पार्टी आरजेडी और बिहार में सत्ताधारी जेडीयू का जनवरी के अंत तक विलय हो जाएगा.

इससे पहले केरल की सोशलिस्ट जनता (डेमोक्रेटिक) का जनता दल में विलय हो गया है. जेडीयू और आरजेडी के विलय से जनता दल परिवार के एक साथ आकर एक संयुक्त ताकत के रूप में उभरने का एक बहुत महत्वपूर्ण चरण शुरू हो जाएगा.

22 दिसंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर जनता परिवार के बिखरे सदस्यों ने एकीकृत रूप में नरेंद्र मोदी से चुनाव के दौरान किए गए उनके वादों का हिसाब मांगा. लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद सपा, आरजेडी, INLD, जेडी (एस) और जेडीयू के सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती है.

हालांकि जनता परिवार के सदस्य दलों के जुड़ने और बिखरने के इतिहास पर नजर डाले, तो नए ‘समाजवादी जनता दल’ का रास्ता मुश्किलों भरा दिखता है. दिल्ली में हुई दो बैठकों के बाद सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को नए एकीकृत दल के प्रारूप का मसौदा तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नया दल मौजूदा केंद्र सरकार की बदली हुई विकास केंद्रित राजनीति के सामने चुनौती पेश कर पाएगा? नए समाजवादी जनता दल की चुनौतियों भी कम नहीं हैं.

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भरोसे की कमी
गैर कांग्रेसवाद की थिसिस पर बने जनता परिवार में कई बार टूटन आईं. फिर कई दल उभरे और फिर टूटे. ये सिलसिला इतनी बार हो चुका है कि अवाम के एक बड़े हिस्से को भी नहीं पता कि जनता परिवार वाले कितनी बार टूटे और बिखरे. लिहाजा मुलायम सिंह, नीतीश कुमार और लालू जैसे नेताओं के सामने जनता दल का एकीकरण करना बड़ा मसला नहीं है, उनके लिए बड़ी चुनौती एकीकृत नए दल के लिए जनता का भरोसा जुटाना होगा.

कौन करेगा नए दल की अगुवाई
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी लगातार राज्य चुनावों में अपनी विजय पताका फहराती जा रही है. महाराष्ट्र और हरियाणा में उसने अपने दम पर सरकार बनाई है. झारखंड में भी बीजेपी सरकार ने शपथ ले ली है और जम्मू-कश्मीर में भी बीजेपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. सवाल यह भी है कि अगर नया एकीकृत समाजवादी जनता दल उभर कर सामने आता है, तो उसका नेतृत्व कौन करेगा. क्या मुलायम सिंह इसके नेता होंगे. क्या बाकी नेता मुलायम सिंह पर विश्वास कर पाएंगे. इन सभी दलों को मिलाकर देखा जाए तो लोकसभा में इनके सदस्यों की संख्या 15 है, जबकि राज्यसभा में इनकी स्थिति थोड़ी मजबूत दिखती है.

हालांकि सियासी गलियारों में मुलायम सिंह को सर्वाधिक गैर भरोसेमंद नेता बताया जाता है. 2014 के चुनावों से पहले मुलायम यूपीए सरकार के खिलाफ कई बार मुद्दों पर अलग गठजोड़ बनाने के बाद पलट गए थे, लेकिन अब केंद्र में यूपीए की सरकार नहीं है और इस बात की संभावना कम है कि मुलायम बीजेपी के साथ जाएंगे. इन सबके बीच मुलायम, नीतीश या किसी और नेता के नेतृत्व में काम करेंगे इसकी संभावना कम है, साथ ही यूपी और बिहार के बाहर इन नेताओं का प्रभाव भी.

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अपने राज्यों की दशा नहीं बदल पाएं
जनता दल के अहम सदस्यों में से एक रहे लालू यादव ने बिहार में 15 साल शासन किया, लेकिन अपने राज्य की स्थिति बदल पाने में लालू नाकाम रहे. यादव-मुस्लिम समीकरण के दम पर लालू ने लंबे समय तक राज किया, लेकिन ये फॉर्मूले अब काम आएंगे ये कहना मुश्किल है. मुलायम सिंह यादव के बेटे यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार चला रहे हैं और इससे पहले मुलायम सिंह यादव भी यूपी पर शासन कर चुके हैं. लेकिन आज भी यूपी और बिहार में बिजली, पानी और सड़क की समस्याएं जस की तस हैं. हालांकि नीतीश कुमार ने इन सबके मुकाबले बेहतर काम किया, लेकिन एक सीमा से आगे वह भी नहीं जा पाए.

अपने अपने राज्यों में दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़ों के दम पर राज करने वाले ये क्षेत्रीय नेता उम्र के ढलान पर (नीतीश को छोड़कर) हैं. उनकी राजनीति का सर्वश्रेष्ठ समय बीत चुका है और देश का मध्यम वर्ग बहुत आगे बढ़ चुका है. राजनीति में रोटी के बजाय जीडीपी के प्रभुत्व वाले समय में नई सोच और नीति के बिना इन दलों के लिए नरेंद्र मोदी का विकल्प हो पाना असंभव लगता है.

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