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क्या 26 जनवरी की परेड में केरल की मंदिर वाली झांकी शामिल नहीं होगी?

गणतंत्र दिवस को अब मात्र एक महीने बचे हैं, ऐसे में जिन राज्यों की झांकियों का चयन होगा उनके पास इन्हें तैयार कराने के लिए महज 25-30 दिन का ही समय बचा है.

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केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन (फाइल फोटो-पीटीआई)
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन (फाइल फोटो-पीटीआई)

एक तरफ जहां सबरीमाला मंदिर में प्रवेश का मुद्दा केरल की राजनीति में छाया हुआ है, ऐसे में एक फैसला केंद्र और केरल के बीच विवाद खड़ा कर सकता है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस बार गणतंत्र दिवस परेड में केरल सरकार द्वारा 'पुनर्जागरण' की थीम पर प्रस्तावित झांकी शामिल नहीं हो पाएगी. केरल सरकार ने इस बार 26 जनवरी के कार्यक्रम में 'वायकोम सत्याग्रह' और 'मंदिर प्रवेश की घोषणा' को प्रदर्शित करती झांकी का प्रस्ताव किया था.

हालांकि इस मामले में रक्षा मंत्रालय की औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं है, क्योंकि चयन प्रक्रिया अभी आखिरी चरण में है. गौरतलब है कि हर साल गणतंत्र दिवस परेड में 19 से 21 झांकियां शामिल होती हैं. लेकिन इस साल की आखिरी सूची में 20 झांकियों को जगह मिली है, जिसमें 14 झाकियां विभिन्न राज्यों से और 6 झांकियां संघ शाषित राज्य व केंद्र सरकार की होंगी. बता दें कि झांकियों के चयन की समीति रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आती है. इस समिति में वास्तुविद, संगीत, नृत्य, चित्रकारी व कला के क्षेत्र गणमान्य व्यक्ति शामिल होते हैं. वहीं जिन राज्यों की झांकियां नहीं चुनी जाती वे रक्षा सचिव और रक्षा मंत्री से फिर से विचार का आग्रह कर सकते हैं.

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वैसे तो सभी राज्यों की झांकियां हर साल नहीं चुनी जातीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश का मुद्दा अभी गरमाया हुआ है. इस मुद्दे पर केरल सरकार और केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) आमने सामने है. लिहाजा ऐमे केरल सरकार की मंदिर प्रवेश को आंदोलन को प्रदर्शित करने वाली झांकी का चयन न होने से एक बार फिर राजनितिक विवाद खड़ा हो सकता है.

क्या था वायकोम सत्याग्रह?

वायकोम सत्याग्रह केरल के त्रावनकोर के वायकोम में 1924 में शुरू हुआ था. जिसका उद्देश्य गांधीवादी तरीके से अछूतों का हिंदू मंदिरों में प्रवेश और सार्वजनिक सड़कों के उपयोग के बारे में अपने अपने अधिकारों को मनवाना था. इस आंदोलन का नेतृत्व टीके माधवन, के केलप्पन और केपी केशवमेनन ने किया था.  30 मार्च 1924 को केरल कांग्रेस के एक दल ने जिसमें सवर्ण और निम्न दोनो जाति के लोग शामिल थे, मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की. लेकिन इनकी गिरफ्तारी के बाद इस सत्याग्रह के समर्थन में पूरे देश से स्वयंसेवक, पंजाब से अकाली जत्था और पेरियार के नेतृत्व में एक दल वायकोम पहुंचने लगा.

साल 1924 में त्रावनकोर के महाराजा की मृत्यु के बाद महारानी ने सभी सत्याग्रहियों को मुक्त कर दिया. लेकिन मंदिर की सड़क सबके लिए खोलने की मांग नामंजूर कर दी. फिर 1925 में महात्मा गांधी केरल पहुंचे और उनका महारानी से समझौता हुआ, जिसमें मंदिर की सड़क पर अवर्णों को प्रवेश की अनुमति मिल गई लेकिन मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं मिली. इस लिहाज से वायकोम सत्याग्रह मंदिर प्रवेश का पहला आंदोलन कहा जा सकता है.

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