प्रख्यात मुस्लिम विद्वान, प्रतिशील चिंतक, लेखक और दाऊदी बोहरा समुदाय के सुधारवादी नेता असगर अली इंजीनियर का लम्बी बीमारी के बाद मंगलवार को निधन हो गया. वह 74 वर्ष के थे.
असगर की पत्नी का पहले ही निधन हो गया था. वह अपने पीछे पुत्र इरफान और बेटी सीमा इंदौरवाला को छोड़ गए हैं. असगर लम्बे समय से बीमार थे और मंगलवार सुबह आठ बजे के करीब मुम्बई के सांताक्रूज पूर्व स्थित आवास पर उन्होंने आखिरी सांस ली. इरफान ने बताया कि उनका अंतिम संस्कार बुधवार को हो सकता है.
राजस्थान के सलम्बर में एक दाऊदी बोहरा आमिल परिवार में 10 मार्च 1939 को जन्मे असगर ने कम उम्र में ही कुरान की तफसीर, ताविल, फिक और हदीथ की शिक्षा पूरी कर ली थी.
उन्होंने पिता शेख कुरबान हुसैन आमिल थे. असगर ने अपने पिता से अरबी सीखी. बाद में उन्होंने प्रमुख विद्वानों की सभी प्रमुख धार्मिक रचनाओं और शास्त्रों का अध्ययन किया.
मध्य प्रदेश के इंदौर से सिविल इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण करने के बाद असगर ने लगभग 20 सालों तक बृहन्मुम्बई नगर निगम (बीएमसी) में अपनी सेवाएं दी.
1970 के दशक में बीएमसी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद वह दाऊद बोहरा समुदाय के सुधारवादी आंदोलन से जुड़ गए. उन्होंने आगे चलकर इंस्टीट्यूट ऑफ इस्लामिक स्टडीज (1980) और सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेक्युलरिज्म (1993) की स्थापना की. उन्होंने विभिन्न विषयों पर लगभग 50 पुस्तकें लिखी. वह सभी धर्मों को बराबर का सम्मान देने में विश्वास रखते थे.
सुधारवादियों के अनुसार, असगर कभी भी पहले से चली आ रही परम्परा और संस्कृति का अंधानुकरण करने में विश्वास नहीं रखते थे, बल्कि विभिन्न मुद्दों पर फिर से विचार करने और वर्तमान समय की जरूरतों के अनुसार इस्लाम की व्याख्या करने की कोशिश करते थे.