राजस्थान का एक जिला कोटा बहुत तेजी से आगे बढ़ा. इस जिले की पूरी अर्थव्यवस्था उन कोचिंग संस्थानों की वजह से आगे बढ़ी, जिन्होंने धीरे-धीरे अपनी जड़ें बहुत मजबूत कर ली हैं. लेकिन इस शहर के साथ एक कलंक जुड़ता जा रहा है, माना जाने लगा है कि धीरे-धीरे कोटा आत्महत्या की नगरी बनती जा रही है. पिछले दिनों यहां एक के बाद एक 3 स्टूडेंट्स ने आत्महत्या कर ली. इसके बाद इंडिया टुडे ने यहां का दौरा कर जमीनी हकीकत जानने की कोशिश की कि इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी करने आए छात्रों में से कुछ लोग आखिर यहां मौत को क्यों गले लगा लेते हैं?
कोटा को देश के कोचिंग हब का तमगा मिला हुआ है. लेकिन ऐसा रातों-रात नहीं हुआ. करीब 2 दशक पहले इस जिले को इंडस्ट्रियल टाउन के रूप में जाना जाता था जहां लघु उद्योग चल रहे थे. यहां इलेक्ट्रिकल इक्विपमेंट, कपड़े आदि की ईकाइयां काम कर रही थीं. धीरे-धीरे ये इकाइयां पीछे चली गई हैं और कोचिंग सेंटरो का विस्तार होता गया.
कोटा को ही सफलता का पर्याय माना जाने लगा है
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल समेत देश के विभिन्न राज्यों के लाखों छात्र यहां अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए आते हैं. देखा गया है कि कुछ राज्यों के सिलेबस अलग होते हैं. प्राइमरी और सेकंडरी लेवल की शिक्षा की गुणवत्ता में भी अलग-अलग राज्यों में अंतर होता है. क्षमता न रहते हुए भी छात्र पर दबाव बनाया जाता है कि वह प्रतियोगिता में सफल हों. इसका परिणाम गलत निकलता है.
आईआईटी की तैयारी करने बिहार से आए चंदन कुमार ने इंडिया टुडे को बताया, 'मैं 6 महीने पहले बिहार से IIT की तैयारी करने कोटा आया, मैं बिहार में रहता था, बिहार में मेरा घर है. अगर मुझे अहसास होता कि मैं वहीं से एग्जाम क्लियर कर लूंगा तो यहां क्यों आता? पिछली बार जब मैंने यह परीक्षा दी थी तो परिणाम ठीक नहीं आया था, तो सोचा कि एक बार और प्रयास किया जाए.'
हर साल डेढ़ लाख छात्र आते हैं कोटा
हर साल तकरीबन डेढ़ लाख से ज्यादा छात्र कोटा में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने आते हैं, इनमें से अधिकांश राजस्थान के बाहर के होते हैं. इनकी जरूरतें पूरी करने के लिए यहां बाजार डिवेलप हो गए हैं. कोटा में इसी को लेकर बहुत सारे घर, अपार्टमेंट, कॉम्प्लेक्स, रेस्टोरेंट, फूड जॉइंट खुल गए हैं जो छात्रों के बल पर चल रहे हैं. इससे यहां पर कोचिंग का एक वातावरण तैयार हो गया है.
भारी पड़ जाती हैं मां-बाप की अपेक्षाएं
लाखों छात्र यहां विभिन्न परीक्षाओं जैसे आईआईटी और एम्स की तैयारी करते हैं, लेकिन इनमें से बहुत ऐसे होते हैं जिनमें प्रतियोगिता में सफल होने की क्षमता नहीं होती. कई बार ऐसा होता है कि दूर रह रहे मां-बाप की अपेक्षाओं की नीचे छात्र दब जाते हैं. घर से दूर रहते हुए उन्हें कोई भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक दबाव के चलते संकट की घड़ी में वो सोच ही नहीं पाते कि उन्हें आखिर करना क्या चाहिए. अत्यधिक दबाव और तनाव को दूर करने का उपाय न जानने के कारण कई युवा ऐसा कदम उठा लेते हैं जिसमें उनका जीवन ही खत्म हो जाता है.
कई छात्रों का बेस होता है कमजोर
यूपी से आकर IIT की तैयारी करने आई अपूर्वा अरोड़ा ने इंडिया टुडे को बताया कि सबसे बड़ी बात यह है कि कई छात्रों की पढ़ाई का बेस ही बहुत कमजोर होता है. यानी की 10वीं और 11वीं की पढ़ाई में ही वो पिछड़े होते हैं. आईआईटी के लिए जिस तरह के क्वॉलिटी एजुकेशन की जरूरत होती है वह उनके पास होती ही नहीं. कोचिंग क्लास में बहुत से छात्र होते हैं. पढ़ाई में कमजोर छात्र वहां संकोचवश सवाल भी नहीं कर पाता. धीरे-धीरे वह और पिछड़ता जाता है और डिप्रेशन में चला जाता है.
इस साल 15 छात्रों ने की आत्महत्या
इस साल करीब 15 से ज्यादा छात्रों ने कोटा में अपनी जान दे दी. इनमें से कुछ छात्र यूपी बिहार के ऐसे परिवारों से थे जिनके पैरंट्स ने लोन लेकर या जमीन जायदाद गिरवी रखकर उन्हें कोचिंग के लिए कोटा भेजा था. ऐसे में उनके ऊपर कभी-कभी दबाव भी होता था. कई छात्रों ने इंडिया टुडे को बताया कि प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए जिस तरह की तार्किकता की जरूरत होती है उस तरह प्राइमरी और सेकंडरी की कक्षाओं में बताया ही नहीं जाता. कई प्रदेशों की शिक्षा में इस तरह की कमी देखी जाती है लेकिन ऐसे छात्र जब तैयारी के लिए कोटा आ जाते हैं तो उन्हें अलग मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
पहले स्क्रीनिंग हो, दिक्कत होने पर काउंसलिंग
होप फाउंडेशन के प्रेसिडेंट डॉक्टर एम. एल. अग्रवाल का कहना है कि जो छात्र कोटा आकर तैयारी करना चाहते हैं. सबसे पहले उनकी स्क्रीनिंग होनी चाहिए कि उनमें योग्यता है या नहीं, कहीं उनके अवसाद का कोई इतिहास तो नहीं, मनोवैज्ञानिक रूप से वो मजबूत हैं या नहीं. अगर छात्र उस फील्ड के लिए फिट नहीं है तो उसकी कैरियर काउंसलिंग होनी चाहिए, उसे बताया जाना चाहिए कि वह दूसरी फील्ड के लिए योग्य है. दूसरा, बच्चों को गाइड करने वाले क्लिनिक खुलने चाहिए जिससे समय-समय पर उन्हें सहायता मिलती रहे.
डेढ़ से 5 लाख रुपये एक छात्र का एक वर्ष का खर्च आता है
यूपी, एमपी से कोटा आने वाले छात्र यहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में डेढ़ से 5 लाख रुपये तक प्रति वर्ष खर्च करते हैं. कुछ ऐसे छात्र जिनकी हैसियत इतनी नहीं होती, जिनके पैरेंट्स लोन या उधार लेकर कोटा भेजते हैं वो छात्रों पर अनुचित दबाव भी डालते हैं कि अगर वो सफल नहीं हुए तो क्या होगा. ऐसा भी देखा गया है कि शुरुआती दौर में अगर कोई छात्र प्रतियोगी परीक्षा में सफलता हासिल नहीं कर पाता तो उस पर और दबाव पड़ने लगता है.
'पढ़ने भेजें, न बनाएं रिजल्ट का दबाव'
मोशन प्राइवेट एजुकेशन लिमिटेड के नितिन विजय का कहना है कि कभी-कभी छात्रों पर इतना ज्यादा दबाव पड़ने लगता है कि मुश्किल हो जाती है. 'हम पैरेंट्स को यह समझाने का प्रयास करते हैं कि अगर आपने बच्चे की पढ़ाई पर पैसे खर्च किए हैं तो उसके बदले में उस पर रिजल्ट का दबाव मत बनाइए'.