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खामोश...ब्रेक के बाद लौटे ‘नागरिक’ राहुल गांधी का डिजास्टर टूरिज्म अभी जारी है

राहुल गांधी की उत्तराखंड के आसमान में चल रही हवाई राजनीति पर कुछ भी सुनने से पहले पढ़ें ये बयान. ये बयान कांग्रेस की प्रवक्ता और कभी संसद में ट्रैक्टर ड्राइव कर पहुंची आंध्र प्रदेश की नेता रेणुका चौधरी ने दिया है.

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राहुल गांधी
राहुल गांधी

राहुल गांधी की उत्तराखंड के आसमान में चल रही हवाई राजनीति पर कुछ भी सुनने से पहले पढ़ें ये बयान. ये बयान कांग्रेस की प्रवक्ता और कभी संसद में ट्रैक्टर ड्राइव कर पहुंची आंध्र प्रदेश की नेता रेणुका चौधरी ने दिया है.

राहुल गांधी वहां एक वीआईपी के तौर पर नहीं जा रहे हैं. वह एक नागरिक के तौर पर जा रहे हैं. कांग्रेस के उपाध्यक्ष के तौर पर जा रहे हैं ये देखने कि राहत सामग्री सही जगह पहुंच रही है. राहुल ने नहीं कहा कि मैं रैंबों हूं और मैंने ये किया, वो किया.

आपको नहीं पता है कि वह क्या कर रहे हैं... क्या चाहते हैं आप लोग. क्या-क्या बताएं हम लोग उनके बारे में. वो अपने बाल कब कटवाते हैं. कंघा कब करते हैं ये सब. हर किसी को मामूली चीजों के प्रचार की आदत नहीं होती. कि वो बताते फिरें कि मैं कब थूकता हूं, कब छींकता हूं. ’

प्रवक्ता की नौकरी बेहद दयनीय होती है. पार्टी के नेता कुछ भी कर आएं, जवाब या कहें कि सफाई प्रवक्ता को देनी होती है. महंत ने पोंछा लगाया हो या दिग्गी ने लादेन जी कहा हो, माइक प्रवक्ता के सामने अड़ा दिए जाते हैं. और इस बार तो मामला पार्टी सुप्रीमो का है. एक ऐसे राजकुमार का है, जिस पर लोकतंत्र का तो पता नहीं, मगर कांग्रेस हर रोज नए सिरे से लट्टू होती है. मैं वारी जावां गाती रहती है. और अब मौका भी खास है. ऐसे में हमलावर होना बनता ही है.

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मौका ये है कि राहुल गांधी छुट्टियों से लौट आए हैं. या शायद छुट्टियों की मियाद खत्म हो गई. यहां की मीडिया का मौतों और सरकारी लापरवाही पर मचा कर्कश शोर उनके छुट्टियों के सुकून भरे संगीत में खलल डाल रहा होगा. ऐसे में राजकुमार लौटते नहीं तो क्या करते. वैसे भी कांग्रेसियों की आजमाई आदत है छुट्टियों को खराब न करने की. बस्तर हमले के दौरान शिंदे साहब भी तो कुछ ऐसा ही कर रहे थे.

मगर इस बार अच्छा इत्तफाक रहा कि माननीय गृह मंत्री देश में ही हैं उत्तराखंड आपदा के दौरान. सोनिया मनमोहन दौरे के बाद वीआईपी हवाई दौरों की बाढ़ आई, तो शिंदे साहब ने साफ कहा कि कोई भी वीआईपी दौरा न करे. राहत कार्यों में दिक्कत आती है. दुरुस्त था उनका कहना. लगा कि देर से ही सही रीढ़ उग आई है. खबर आई कि गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि किसी भी वीआईपी को लैंड न करने दिया जाए. ये भी ठीक. आखिर लाशों पर सियासत से ज्यादा अश्लील क्या हो सकता है इस लोकतंत्र में. शिंदे के सुर में सुर मिलाते हुए कांग्रेस के आदि प्रवक्ता और आज कल रेणुका के राज्य आंध्र प्रदेश के पार्टी प्रभारी दिग्विजय सिंह भी बोले, ट्वीट के जरिए. उन्होंने कहा कि वीआईपी लोगों को प्रशासन को अपना काम करने देना चाहिए. फोटो खिंचवाने और राजनीति करने के लिए उन्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए.

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मगर ये क्या महज 48 घंटे में ये भाषण, ये तेवर भोथरे हो गए. शिंदे और दिग्गी चुप्पी साध गए. रेणुका सामने आईं, नागरिक की मासूम सफाई दी और ज्यादा तीखे सवाल पूछने पर भड़क गईं. छींकने और थूकने के बारे में हम नहीं डॉक्टर पूछते हैं. वह भी बीमार मरीजों से. अब न तो अभी राहुल बीमार हैं और न ही जनता ने अपनी डॉक्टरी शुरू की है. वह तो ऑपरेशन थिएटर में इंतजार कर रही है. लोकसभा चुनावों की लाल बत्ती जलने का.

और इधर राहत कामों के ढलने से पहले ही राहुल पहुंच गए हैं. सवाल ये उठता है कि अगर राहुल को इतनी ही चिंता थी तो अब तक कहां थे. कहां थे, ये सवाल बड़ा पेचीदा है. बताया नहीं जा सकता. लोग तो कुछ भी कहते रहते हैं कि हैप्पी बर्थडे मनाने गए थे. सिक्योरिटी का मसला है. मगर अभी तो हमने पढ़ा कि रेणुका जी कह रही हैं कि वह वीआईपी नहीं है. नागरिक भर हैं. जो मरे वो भी नागरिक, जो बचे वो भी नागरिक और जो अब उनका मुआयना करने जा रहे हैं वह भी नागरिक. ये नागरिकता की नई परिभाषा है. मगर ये कैसा नागरिक है, हिदायतों के बाद भी हवाई सफर पर निकल पड़ता है. जो राहत के कामों में रुकावट डालता हुआ देहरादून से सड़क मार्ग अपना देवप्रयाग जाता है. ये कैसा वीआईपी है, जो रात दिन काम में जूझ रहे आईटीबीपी जवानों के गेस्ट हाउस में प्रोटोकॉल के तामझाम के साथ रुकता है. और फिर अगली सुबह गोचर से गुप्तकाशी रवाना हो जता है. फिर से हेलिकॉप्टर पर. देश ने आज तक पर तस्वीरें देखी हैं. तस्वीरें जिसमें सिक्युरिटी का अमला, आईटीबीपी के अफसर और प्रशासनिक अधिकारी आगे पीछे घूम रहे हैं. आखिर राहुल एसपीजी सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति हैं. उनके परिवार पर हमेशा आतंकी संकट रहता है. और फिर वह वीआईपी कहां. वह तो वीवीआईपी हैं. एक्स्ट्रा वी का कमाल है ये.

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और विजय बहुगुणा पर तो सवाल ही नहीं उठाना चाहिए. आखिर आलाकमान का आशीर्वाद ही तो है, जो बहुगुणा सीएम बन गए. न विधायक थे, न राज्य की राजनीति में सक्रिय थे. यहां एक से एक क्षत्रप कलाबाजी कर रहे थे. हरीश रावत, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, इंदिरा ह्रदयेश और हमारे सत्संगी सतपाल महाराज. तब बारिश और आपदा भी नहीं थी, मगर अकबर रोड से आशीर्वाद ले पैराशूट से लटकते बहुगुणा उतरे. अब राहुल उतरे हैं, तो बहुगुणा और उनकी सरकार बिछ न जाए तो क्या करे.

राहुल गांधी को कितना कुछ दिखता है. उनके भारत एक खोज में कितने और अध्याय जुड़ रहे हैं. ये वही जानें, मगर इतना और जान लें, कि जनता सब जान रही है, देख रही है, गुन रही है, चुनी हुई चुप्पियों को सुन रही है, और ये जनता अपने पर आती है तो बेरहम हो जाती है. जनादेश में ऐसा धुनती है कि सब भूले जनों को लोकतंत्र की धुन याद आ जाती है.

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