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12 साल पुराना राफेल का किस्सा, जानें कब क्या हुआ

राफेल पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है. हर दिन नई बातें निकल कर सामने आ रही हैं. पिछले दो साल से यह मसला सियासी बहस का मुद्दा बना हुआ है.

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राफेल विमान
राफेल विमान

राफेल विमान सौदे का मामला सियासी घमासान का गवाह बना हुआ है. इस मामले में कांग्रेस जहां जेपीसी जांच की मांग उठा रही है, तो केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने किसी भी तरह के घोटाले से इनकार करते हुए इस डील को रद्द नहीं करने की बात कही है.

समाचार एजेंसी एएनआई को  दिए इंटरव्यू में वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि राफेल डील एक साफ सुथरा सौदा है जिसे रद्द करने का कोई सवाल ही नहीं है. जेटली ने आगे कहा कि जहां तक सवाल विमानों के कम या ज्यादा कीमतों का है, तो ये सारे आंकड़े नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के सामने हैं. कांग्रेस भी कैग के पास गई है. उन्होंने कहा कि हम कैग की रिपोर्ट की प्रतीक्षा करेंगे. कैग आंकड़ों के मामले में विशेषज्ञ संस्था है.

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राफेल विमान की कीमतों को लेकर सरकार का रुख स्पष्ट करते हुए जेटली ने कहा कि फ्रांस और भारत के बीच गोपनीय समझौता पूर्व की यूपीए सरकार के दौरान हुआ था और इस समझौते पर पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी के हस्ताक्षर हैं.  

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोमवार को इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री को घेरते हुए उन्हें कमांडर इन थीफ (चोरों का कमांडर) तक कह दिया. राहुल गांधी ने एक वीडियो ट्वीट किया, जिसमें राफेल डील के बारे में समझाया जा रहा है. वीडियो में मौजूद शख्स कह रहा है कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने राफेल डील के बारे में कहा कि भारत सरकार की ओर से अंबानी की कंपनी का नाम सुझाया गया था और उनके पास कोई विकल्प नहीं था.  

इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष ने रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण पर राफेल डील को लेकर हमला बोला था. राहुल गांधी ने राफेल विमान सौदे का ठेका सरकारी उपक्रम हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को नहीं दिए जाने पर रक्षा मंत्री को अपने निशाने पर लिया. राहुल ने इस बारे में ट्वीट कर निर्मला पर 'झूठ बोलने' का आरोप लगाया.

इसी के साथ उन्होंने रक्षा मंत्री से इस्तीफा मांगा. एचएएल के पूर्व प्रमुख टीएस राजू के बयान से जुड़ी खबर ट्विटर पर पोस्ट करते हुए गांधी ने कहा, 'भ्रष्टाचार का बचाव करने का काम संभाल रही RM (राफेल मिनिस्टर) का झूठ एक बार फिर पकड़ा गया है. एचएएल के पूर्व प्रमुख टीएस राजू ने उनके इस झूठ की कलई खोल दी है कि एचएएल के पास राफेल बनाने की क्षमता नहीं है.'

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राफेल मुद्दे पर हर दिन नई-नई बातें और नए-नए आरोप सामने आ रहे हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि इस डील में कब क्या हुआ.

- साल 2007 में वायुसेना की ओर से मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (MMRCA) खरीदने का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया. इसके बाद भारत सरकार ने 126 लड़ाकू विमानों को खरीदने का टेंडर जारी किया.

-  इसके बाद जिन लड़ाकू विमानों को खरीदना था, उनमें अमेरिका के बोइंग F/A-18 सुपर हॉरनेट, फ्रांस का Dassault Rafale, ब्रिटेन का यूरोफाइटर, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन F-16 फाल्‍कन, रूस का मिखोयान MIG-35 और स्वीडन के साब  JAS-39 ग्रिपेन जैसे एयरक्राफ्ट शामिल थे. हालांकि, Dassault एविएशन के राफेल ने बाजी मारी.

- 4 सितंबर 2008 को रिलायंस ग्रुप ने रिलायंस एयरोस्पेस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (RATL) नाम से एक नई कंपनी बनाई. इसके बाद RATL और Dassault के बीच बातचीत हुई और ज्वाइंट वेंचर बनाने पर सहमति बन गई. इसका मकसद भविष्य में भारत और फ्रांस के बीच होने वाले सभी करार हासिल करना था.

- मई 2011 में एयर फोर्स ने राफेल और यूरो फाइटर जेट्स को शॉर्ट लिस्टेड किया.

- जनवरी 2012 में राफेल को खरीदने के लिए टेंडर सार्वजनिक कर दिया गया. इस पर राफेल ने सबसे कम दर पर विमान उपलब्ध कराने को बोली लगाई. शर्तों के मुताबिक भारत को 126 लड़ाकू विमान खरीदने थे. इनमें से 18 लड़ाकू विमानों तैयार हालत में देने की बात थी, जबकि बाकी 108 विमान Dassault की मदद से हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा तैयार किया जाना था. हालांकि इस दौरान भारत और फ्रांस के बीच इन विमानों की कीमत और इनको बनाने की प्रक्रिया शुरू करने के समय पर अंतिम समझौता नहीं हुआ था.

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-  13 मार्च 2014 तक राफेल विमानों की कीमत, टेक्नोलॉजी, वेपन सिस्टम, कस्टमाइजेशन और इनके रख रखाव को लेकर बातचीत जारी रही. साथ ही HAL और Dassault एविएशन के बीच इसको बनाने के समझौते पर हस्ताक्षर हो गए.

- यूपीए शासनकाल में राफेल को खरीदने की डील को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका. हालांकि कांग्रेस पार्टी दावा करती है कि उसने 526.1 करोड़ रुपए प्रति राफेल विमान की दर से डील की थी. यह साफ नहीं हुआ था कि Dassault भारत की जरूरतों के मुताबिक इन विमानों को तय वक्त में उपलब्ध कराएगा या नहीं. इसकी वजह यह है कि यूपीए शासनकाल में यह डील पूरी नहीं हुई थी.

- इसके बाद एनडीए सत्ता में आई और 28 मार्च 2015 को अनिल अंबनी के नेतृत्व में रिलायंस डिफेंस कंपनी बनाई गई.

- 10 अप्रैल 2015 को पीएम मोदी  ने फ्रांस की राजधानी पेरिस का दौरा किया और उड़ान के लिए तैयार 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के अपनी सरकार के फैसले का ऐलान किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि भारतीय वायुसेना के लिए ये विमान खरीदना बेहद जरूरी है.

- जून 2015 में रक्षा मंत्रालय ने 126 एयरक्राफ्ट खरीदने का टेंडर निकाला.

- दिसंबर 2015 में रिलायंस इंटरटेनमेंट ने फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति ओलांद की पार्टनर जूली गयेट की मूवी का-प्रोडक्शन में 16 लाख यूरो का निवेश किया. फ्रांस के अखबार मीडिया पार्ट के मुताबिक यह निवेश फ्रांस के एक व्यक्ति के इनवेस्टमेंट फंड के जरिए किया गया, जो अंबानी को पिछले 25 वर्षों से जानता था. हालांकि, जूली गयेट के प्रोडक्शन रॉग इंटरनेशनल ने अनिल अंबानी या रिलायंस के प्रतिनिधियों से मुलाकात करने की बात को खारिज कर दिया.

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- सितंबर 2016 को भारत और फ्रांस के बीच 36 राफेल विमान खरीदने की फाइनल डील पर दस्तखत हुए. इन विमानों की कीमत 7.87 बिलियन यूरो रखी गई. इस डील के मुताबिक इन विमानों की डिलीवरी सितंबर 2018 से शुरू होने की बात कही गई.

- फरवरी 2017 को Dassault Reliance Aerospace Ltd (DRAL) ज्वाइंट वेंचर को गठित किया गया.

-  इस दौरान कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने HAL को दरकिनार करके अनिल अंबानी की रिलायंस को डील दिलाई. इस पर रिलायंस डिफेंस लिमिटेड के सीईओ राजेश ढींगरा ने सफाई देते हुए कहा कि उनकी कंपनी को ज्वाइंट वेंचर कॉन्ट्रैक्स सीधे Dassault से मिला और इसमें सरकार का कोई रोल नहीं था.

- सितंबर 2018 को राफेल डील (Rafale Deal) पर मचे घमासान के बीच अब फ्रांस्वा ओलांद ने नया खुलासा किया. फ़्रेंच अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस का नाम खुद भारत सरकार ने सुझाया था. हालांकि फ्रांस सरकार और Dassault ने इससे किनारा किया है लेकिन विपक्ष के आरोपों को बल मिल गया है.

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