'ओवल ऑब्जर्वर फाउंडेशन' की ओर से शुक्रवार को जारी एक बयान के मुताबिक, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कंसोर्टियम (आईआईटीसी) द्वारा तैयार गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट प्लान 2015 (जीआरबीएमपी) में सुझाया गया है कि नदी में छोड़ी गई सामग्री से होने वाली दिक्कत से निपटने के लिए लगभग 6 से 7 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है.
आईआईटीसी सात आईआईटी संस्थानों (मुंबई, दिल्ली, मद्रास, कानपुर, खड़गपुर, गुवाहाटी और रुड़की) का एक समूह है. इसने इस साल जनवरी में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को जीआरबीएमपी रपट पेश की थी. आईआईटी कानपुर और ओवल ऑब्जर्वर फाउंडेशन की ओर से इस हफ्ते की शुरुआत में आयोजित एक कार्यशाला में भी आईआईटीसी ने गंगा के कायाकल्प और बहाली के लिए तैयार किए गए मसौदे को साझा किया था.
बयान के मुताबिक, यह खाका सभी हितधारक समूहों, आईआईटीसी प्लस की सामूहिक पहल है. इसके राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 150 से अधिक सदस्य हैं.
आईआईटी कानपुर में प्राचार्य और जीआरबीएमपी के समन्वयक विनोद तारे ने कहा कि गंगा प्रदूषण की मूल समस्या का समाधान करने के लिए नीतिगत बदलावों की आवश्यकता है. उन्होंने जोर दिया कि गंगा रिवर बेसिन के विभिन्न तटों के लिए शहरी नदी प्रबंधन योजना (यूआरएमपी) के विकास पर ध्यान देने की जरूरत है.
(इनपुट: IANS)