अरविंद केजरीवाल ने काफी सोच-विचार के बाद दिल्ली का सीएम बनना तो स्वीकार कर लिया, लेकिन उनकी असली परेशानियां तो अब शुरू होंगी. उन्होंने आम लोगों के मन में उम्मीदों की जो ज्योति जला दी है, अब वह आग बनकर पूरी तरह से धधक रही है. हर आदमी यह इंतज़ार कर रहा है कि कब उसे बिजली के बिल आधे होकर मिलेंगे और कब साफ पानी की प्रचुर सप्लाई होगी. ठेके पर काम कर रहे हजारों सफाईकर्मी इंतज़ार कर रहे हैं कि कब उनकी नौकरी पक्की हो और कब उन्हें बढ़ी हुई तनख्वाह मिले. ऐसी और भी बहुत-सी उम्मीदें लगाए लोग बैठे हैं.
अब तक जो खबरें सामने आ रही हैं, उनसे लगता तो है कि इन मुद्दों पर केजरीवाल गंभीर हैं और इस दिशा में पहल करते हुए एक बेहद ईमानदार अधिकारी को अपना प्रमुख सचिव बनाने का इरादा रख रहे हैं. यह महत्वपूर्ण है कि वह अपने इर्द-गिर्द ईमानदार और अनुभवी ऑफिसरों को तैनात करें. केजरीवाल खुद ब्यूरोक्रैट रहे हैं और उन्हें पता है कि सरकार में फाइलें कैसे घूमती हैं. अगर वह उन अच्छे अधिकारियों को साथ लेकर चलेंगे, तो उनके लिए काम थोड़ा आसान होगा.
केजरीवाल क्या सोशलिस्ट सरकार चलाना चाहते हैं, क्या वह वामपंथी सरकार के हिमायती हैं या फिर वह बंगाल की तरह राज्य को कर्ज में डुबो देना चाहते हैं? ऐसे कई प्रश्न हवा में लहरा रहे हैं और उनके जवाब ढूंढ़े जा रहे हैं. बिजली, पानी, पक्की नौकरियों पर होने वाले खर्च के बारे में जो आंकड़े सामने आए हैं उनसे तो कुछ ऐसा ही लगता है क्योंकि इन सब के लिए अरबों रुपये चाहिए जो दिल्ली सरकार के पास नहीं है. वह केन्द्र सरकार की तरह नोट नहीं छाप सकती है. ऐसे में दिल्ली सरकार ओवर ड्राफ्ट लेगी, जिसे चुका पाना उसके लिए शायद असंभव हो.
कई बार जो सामने दिखता है या सैद्धांतिक रूप से आसान लगता है, वह व्यावहारिक रूप से इतना कठिन हो जाता है कि उसे सुलझाने में कई बरस बीत जाते हैं और अरविंद केजरीवाल के पास समय बहुत कम है. यह उनकी सबसे बड़ी समस्या है और रास्ते का रोड़ा है. तो अब अरविंद केजरीवाल के जादू के दूसरे भाग का इंतज़ार कीजिए.