आम आदमी पार्टी अब परिपक्व होने लगी है. अब वह नौसिखियों की तरह व्यवहार नहीं कर रही है. अब वह राजनीतिक दांवपेच जान गई है और उसका इस्तेमाल भी करने लगी है. अपनी रक्षा में वह राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का सहारा लेने लगी है. ताजा उदाहरण है उसके विधायक का यह आरोप कि उसे करोड़ों रुपए का ऑफर मिला था कि वह सरकार गिरा दें.
सुनने में तो यह बड़ा सनसनीखेज लगता है, लेकिन यथार्थ की ज़मीन पर बिल्कुल बचकाना. जो लोग संसदीय लोकतंत्र के तौर-तरीकों से वाकिफ हैं, वह इस आरोप पर शायद हंस पड़ें. ऐसा नहीं है कि धन के बूते सरकारें नहीं गिराई गईं या विधायकों-सांसदों की खरीद-फरोख्त नहीं होती, लेकिन इस बचकाने ढंग से नहीं, जैसा विधायक महोदय आरोप लगा रहे हैं.
बीजेपी या फिर कांग्रेस भी यह जानती है कि जनता की उम्मीदों पर सवार एक पार्टी की सरकार को शैशवकाल में ही गिरा देने का परिणाम क्या हो सकता है. जनता ने जिस तरह आम आदमी पार्टी को समर्थन दिया, वह अभूतपूर्व है. ऐसे में बीजेपी क्या, कोई भी पार्टी उसकी सरकार को गिराने का अभी प्रयास नहीं कर सकती. उन्हें पता है कि ऐसी सरकार को गिराकर उन्हें जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ सकता है और ऐसा जोखिम वे क्यों उठाएंगी, खासकर जब लोकसभा चुनाव सिर पर हों. दिल्ली में जो़र-जबर्दस्ती से सरकार बनाकर पार्टी बदनामी के सिवा क्या पाएगी?
मतलब साफ है. अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए पार्टी के पास खास कुछ है नहीं. उन्होंने एक महीने से भी ज्यादा समय में जो कुछ किया, वह सबके सामने है. इस तरह के मुद्दे उछालकर थोड़ी देर के लिए उसके कुछ नेता सुर्खियां बटोर सकते हैं, जनता को भरमा सकते हैं और बहला भी सकते हैं, लेकिन सवाल जो पूछा जा रहा है वह यह है कि पार्टी की उपलब्धियां क्या-क्या हैं? सिर्फ यह आरोप लगा देने से कि बड़े पूंजीपति उसकी सरकार को गिरा देना चाहते हैं, कुछ भी सिद्ध नहीं होता. और अगर ऐसा ही है, तो पार्टी के नेताओं को तमाम दस्तावेज लेकर उतरना चाहिए था, ताकि कुछ साबित हो.
यह सब देखकर इतना ही कहा जा सकता है कि पार्टी ने एक पूर्ण राजनीतिक दल के रूप में अवतार लेना शुरू कर दिया है. अब आगे उससे इस तरह के कई कदमों और बयानों की उम्मीद की जा सकती है. अब जबकि लोकसभा चुनाव सिर पर आ गए हैं, तो ऐसे आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला चल पड़ेगा.
कहावत है न, खुदा जब हुस्न देता है, तो नज़ाकत आ ही जाती है!