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Opinion: वोट की घटिया राजनीति कब तक ?

लोकतंत्र की सबसे बड़ी समस्या है कि इसमें जनता को जीतना पड़ता है. यह जीत ही दरअसल वोट में तब्दील होती है. लेकिन हाल के वर्षों में सीधे वोट पाने की जुगत में राजनेता गिरते जा रहे हैं. अब उसकी कोई मिसाल नहीं मिलती. इसका सबसे ताजा उदाहरण तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने दिया.

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लोकतंत्र की सबसे बड़ी समस्या है कि इसमें जनता को जीतना पड़ता है. यह जीत ही दरअसल वोट में तब्दील होती है. लेकिन हाल के वर्षों में सीधे वोट पाने की जुगत में राजनेता गिरते जा रहे हैं. अब उसकी कोई मिसाल नहीं मिलती. इसका सबसे ताजा उदाहरण तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने दिया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का फायदा उठाने की कोशिश में राजीव गांधी के हत्यारों को जेल से छोड़ने की घोषणा तक कर डाली.

सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी के हत्यारों की मृत्युदंड की सजा को उम्र कैद में बदल क्या दिया, जयललिता ने सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए आनन-फानन में यह महत्वपूर्ण घोषणा कर दी. बात साफ थी कि उन्हें लगा कि इस मामले में करुणानिधि कहीं बाजी न मार लें. करुणानिधि एलटीटीई के समर्थक माने जाते हैं और इस मामले को तूल देकर उन्होंने यूपीए सरकार की विदेश नीति को भारी धक्का पहुंचाया था.

तमिलनाडु की राजनीति इमोशंस से चलती है और वहां विकास जैसे शब्द बहुत मायने नहीं रखते ठीक वैसे ही जैसे बंगाल में. हत्यारे तो हत्यारे होते हैं और इन हत्यारों ने राजीव गांधी ही नहीं कुल 26 लोगों की जान ले ली. इतने सारे लोगों की जान लेने वालों को जेल से तुरंत रिहा करने का एलान करने में जयललिता को जरा भी शर्म नहीं आई. उन्हें तो श्रीलंका के तमिल समर्थकों के वोटों की चिंता है. संसद में पिछले कई दिनों से तेलंगाना का नाटक चल रहा है. कलाकार हैं आन्ध्र प्रदेश के सांसद जो दो समूहों में बंटे हुए हैं. एक गुट पृथक तेलंगाना का समर्थन कर रहा है तो दूसरा उसका विरोध. इस सिलसिले में जनता को अपनी प्रतिबद्धता दिखाने के लिए ये सांसद कई तरह की उलजलुल हरकतें कर रहे हैं. इनकी हरकतें इतनी गिरी हुई हैं कि उन्हें देखकर शर्म आती है. जिस लोकतंत्र के वोट की खातिर वे यह नाटक कर रहे हैं उन्हें उसकी मर्यादा तक का ख्याल नहीं है.

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ऐसा नहीं है कि भारत में वोट की राजनीति कोई नई चीज है. यह तो वर्षों से की जा रही है और इसका दुष्परिणाम हमें कई बार झेलना पड़ा. वोटों की खातिर राजनेताओं के गिरने के कई उदाहरण मिलते हैं लेकिन चुनाव नजदीक देख कर हर स्तर के नेता एक से एक घटिया कदम उठा रहे हैं. हर राज्य से नकारात्मक खबरें आ रही हैं. लगता है राजनीति में ईमानदारी और शुचिता के लिए जगह ही नहीं बची हुई है. अब तो जनता को ही इसका समाधान ढूंढ़ना होगा ताकि लोकतंत्र की नींव खोखली न हो जाए. चुनाव आ रहे हैं और जनता को चाहिए कि वह राजनेताओं के इरादों को समझ कर ही वोट दें तभी यह लोकतंत्र बच पाएगा.

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