सबसे प्रदूषित शहरों में से एक दिल्ली की हवा ठंड और दिवाली से पहले काली होने लगी है. सैटेलाइट से मिले आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली के पड़ोसी राज्यों पंजाब और हरियाणा में तकरीबन ढाई हजार से ज्यादा जगहों में आग लगी है. किसानों ने धान की कटाई के बाद बचे फसल के बाकी हिस्से को खत्म करने के लिए ये आग लगाई है. लेकिन धान के बाद गेहूं बोने की यह तैयारी तकरीबन चार करोड़ से आबादी वाले दिल्ली और आसपास के कई शहरों को महंगी पड़ रही है.

सैटेलाइट से मिले आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली के आसपास के राज्यों खास तौर पर करीब ढाई हजार से ज्यादा खेतों में आग लग चुकी है. एक अक्टूबर को करीब 104 जगहों पर आग लगाई गई थी लेकिन सात अक्टूबर के बाद यह संख्या तेजी से बढ़ी. दो हफ्ते के भीतर करीब 704 ऐक्टिव फायर प्वाइंट रिकॉर्ड किया गया.
इंडिया टुडे की डाटा टीम डीआईयू ने आग वाली जगहों की संख्या और दिल्ली में एक्यूआई के स्तर की तुलना की. जिसमें यह साबित हुआ कि आग के बढ़ने के साथ-साथ हवा भी प्रदूषित होने लगी है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड यानी सीपीसीबी के आंकड़े बताते हैं कि पहली अक्टूबर को औसत प्रदूषण स्तर 93 था वहीं दो हफ्ते बाद यह 252 के स्तर पर पहुंच गया.
Surrounded by burning fields, Delhi starts choking with bad air again before Diwali.@aajtak @IndiaToday pic.twitter.com/9X8ts5Bsyh
— Dipu Rai (@DipuJourno) October 16, 2019
इस बार सभी सवाल पलट गए हैं. क्योंकि ठंड भी नहीं आई है और न दिवाली. आग और हवा के बदलते मिजाज वाले आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली के प्रदूषण में आई अचानक बढ़ोतरी की वजह फसलों में लगाई गई आग है.
India's agricultural 'breadbasket' hits Delhi's air quality @IndiaToday @aajtak pic.twitter.com/4ZxeH4MVU9
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दिल्ली और आसपास के इलाकों की हवा में मौजूद हानिकारक कणों की मात्रा बताने वाला सूचकांक मंगलवार को 252 पर पहुंच गया. एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी एक्यूआई का यह स्तर सांस के मरीजों और खासकर पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए हानिकारक साबित हो रहा है. लेकिन सवाल है कि हर साल आने वाली इस मुसीबत का जिम्मेदार कौन है? पराली जलाने से दिल्ली में बढ़ने वाले प्रदूषण की मात्रा कितनी बढ़ती है?
दिल्ली स्थित थिंक टैंक एनसीएआर की एसोसिएट फेलो सौमी रॉयचौधरी का मानना है कि ठंड आई नहीं है और अप्रैल 2018 से हायर कैटेगरी के कम प्रदूषण वाले इंधन वाली पॉलिसी लागू है. इन सबके बावजूद प्रदूषण बढ़ने की एक ही वजह हो सकती है और वो है फसल की कटाई के बाद लगाई गई आग. “दिल्ली के पड़ोसी राज्यों में जलाई गई पराली हवा के प्रदूषित होने की एक बड़ी वजह है. अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा से मिलने वाली तस्वीरें और आंकड़े इन राज्यों की ओर इशारा कर रहे हैं.”
पंजाब और हरियाणा में खेती के दो सीजन होते हैं. ठंड में गेहूं बोया जाता है जिसकी कटाई अप्रैल से मई तक चलती है जबकि गर्मी में धान की बुआई शुरू हो जाती है. अक्टूबर और नवंबर के दौरान धान की फसल कटनी शुरू हो जाती है. धान के फली वाले हिस्से को काटने के बाद बाकी फसल जला दी जाती है. खेत साफ करने का यह सस्ता तरीका होता है. किसान कहते हैं कि एक एकड़ की पराली हटाने के लिए आठ हजार रुपए लगते हैं और खेती की बाकी खर्च को देखते हुए यह उनके बूते की बात नहीं है.
खेत की सफाई का यह तरीका दिल्ली और आसपास के इलाकों की हवा को और जहरीली बना रहा है. अंतरराष्ट्रीय खाद्य पॉलिसी शोध संस्थान यानी IFPRI की टीम ने पाया कि खेत जलाने के बाद दिल्ली की हवा में प्रदूषण फैलाने वाले छोटे कण (PM2.5) की मात्रा बढ़ जाती है. सैमुअल स्कॉट की अगुवाई में गठित टीम ने अपने अध्ययन में पाया कि, “दिल्ली में प्रदूषण की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से 20 गुना बढ़ जाती है. प्रदूषण फैलाने के लिए जिम्मेदार और वजहों के साथ-साथ पराली जलाने से हवा खराब होती है और सांस की बीमारियों में तीन गुनी बढ़ोतरी हो जाती है.”
हवा में मौजूद छोटे कण फेफड़ों और खून में मिल जाते हैं जिसके बाद कफ, हार्ट अटैक और फेफड़े की बीमारिया बढ़ जाती हैं. कुछ एक्सपर्ट ने इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश की कि आखिर पराली जलाने से प्रदूषण की मात्रा कितनी बढ़ती है. डैनियल एच कवर्थ और उनकी टीम ने 2012-16 के बीच पराली जलाने के बाद दिल्ली में प्रदूषण की मात्रा पर पड़ने वाले असर को नापने की कोशिश की. कवर्थ और उनकी टीम ने पाया कि प्रदूषण फैलाने वाले सबसे जहरीले कण यानी PM2.5 की मात्रा में सात से अठहत्तर फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है.
पराली जलाने की समस्या लंबे समय से है लेकिन हर राजनीतिक दल इस सीजन में किसानों की समस्या दूर करने की जगह हितैशी साबित करते हुए हाथ खड़ा कर देता है. इस बारे में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कहना है कि “इसके लिए किसानों को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता क्योंकि उन्हें अगली फसल के लिए खेत तैयार करना है. यह जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है कि वे किसानों के लिए आसानी से उस तकनीक को उपलब्ध कराएं जो इस समस्या से निजात दे.”