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IAS अफसरों को बचाने के लिए नया नियम लागू, निलंबन के लिए DoPT की मंजूरी जरूरी

केंद्र सरकार के साथ काम कर रहे आईएएस अफसरों की रक्षा के लिए नया नियम आ गया है. अब उनके निलंबन के लिए डीओपीटी की मंजूरी जरूरी होगी. ईमानदार अफसरों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ये नियम लागू किया गया है.

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डीओपीटी की मंजूरी पर ही निलंबित होंगे आईएएस अफसर
डीओपीटी की मंजूरी पर ही निलंबित होंगे आईएएस अफसर

केंद्र में काम करने वाले आईएएस अफसरों के लिए खुशखबरी है. अब उनको तभी सस्पेंड किया जा सकेगा, जब कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) का प्रभार संभाल रहे मंत्री उसके लिए मंजूरी देंगे. इस नए नियम का मकसद सरकारी कर्मचारियों की रक्षा करना है.

पुराना नियम
अभी तक केंद्र सरकार किसी भी आईएएस अफसर को निलंबित कर सकती थी और नौकरशाहों की सेंट्रल रिव्यू कमिटी इसमें तभी हस्तक्षेप कर सकती है जब निलंबन एक साल से ज्यादा हो जाए.

डीओपीटी और रिव्यू कमिटी को अधिकार
डीओपीटी ने 21 दिसंबर को नए नियम की सूचना दी है. इसमें कहा गया है कि केंद्र में काम कर रहे आईएएस अफसरों को अब सिर्फ सेंट्रल रिव्यू कमिटी के कहने और फिलहाल डीओपीटी का प्रभार संभाल रहे राज्यमंत्री जीतेंद्र सिंह की मंजूरी पर ही निलंबित किया जा सकता है.

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पीएम मोदी ने की थी सिफारिश
फिलहाल डीओपीटी के प्रशासनिक प्रमुख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इससे पहले ईमानदार अफसरों की रक्षा करने की बात कही थी. अशोक खेमका और दुर्गा शक्ति नागपाल जैसे ईमानदार अफसरों के निलंबन ने देश में इसके खिलाफ बड़ा माहौल बना दिया था, जिसके बाद करीब एक साल तक राज्यों के साथ चली बातचीत के बाद नया नियम लागू किया गया है. अगर राज्य अपने किसी आईएएस, आईपीएस या आईएफएस अफसर को निलंबित करती है तो उसे 48 घंटों के अंदर इसकी जानकारी केंद्र सरकार को देनी अनिवार्य होगी.

बताना होगा निलंबन का कारण
नए नियम में कहा गया है कि निलंबन के आदेश की कॉपी भेजने के साथ ही निलंबन का कारण भी बताना होगा. इसके अलावा अगर केंद्र सरकार की तरफ से निलंबन प्रमाणित नहीं की गई या अनुशासनिक कार्यवाही शुरू नहीं की गई तो राज्य एक अफसर को 30 दिन से ज्यादा निलंबित नहीं रख सकती. पुराने नियम में ये अवधि 45 दिन थी.

डीओपीटी के सचिव होंगे हेड
सेंट्रल रिव्यू कमिटी में अब डीओपीटी का एक सेक्रेटरी बतौर चेयरपर्सन होगा और इसके सदस्य भी डीओपीटी के ही अफसर होंगे. इससे पहले इस कमिटी के हेड के तौर पर संबंधित मंत्रालय के सचिव होते थे और डीओपीटी के अफसर को रखना विकल्प होता था.

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