ज्यादा पुरानी बात नहीं हुई जब छोटे शहर-कस्बों के धन्ना सेठ भी रोडवेज बस में सवारी करते थे. वह अपने सहयात्री पर ठसका दिखाते हुए कहते थे, 'सबसे महंगी वाली कार तो आज ही खरीद लूं, लेकिन शहर में जान-पहचान इतनी है कि मांगने वालों को कैसे मना करेंगे?' नौकरी वाले सौ रुपये कमाकर 80 रुपये बचाने की सोचते. और अब! सौ रुपये खर्च करने के बाद दस रुपये उधार लेकर भी उड़ाने का चलन आ चुका है.
अब चार दिन की जिंदगी में से कोई भी दो दिन आरजू में और दो इंतजार में गंवा देने को राजी नहीं. गोरखपुर के 53 वर्षीय टायर व्यवसायी अशोक सरावगी चलते एक्टिवा से ही हैं, लेकिन पिछले दिनों होंडा सिटी खरीदी. क्योंकि 'इससे मेरा दर्जा बढ़ गया है. कार सोशल स्टेटस के लिए ज्यादा जरूरी थी. ये चीजें मेरे बच्चों की शादी और उनके भविष्य के लिए ज्यादा जरूरी हैं.'
सिक्योरिटी और आईफोन का मेल
मध्य प्रदेश में ढाई-तीन लाख की आबादी वाले खंडवा के युवा व्यवसायी त्रिलोक यादव का 5,600 वर्ग फुट का डुप्लेक्स बंगला 4-5 करोड़ रुपये का है. घर में मैट्रिक्स के हाइटेक सिक्योरिटी सिस्टम और जायकॉम के 14 कैमरे 42 वर्षीय यादव की पत्नी रोहिणी के आईफोन से जुड़े हैं, जिनके जरिए वे घर पर पूरी निगाह रखती हैं. खंडवा में इस तरह के बंगलों की संख्या सैकड़ा पार कर चुकी है.
गांव-गांव में चाउमीन-बर्गर
कूचामन सिटी पश्चिमी राजस्थान के ठेठ परंपरागत नागौर जिले के जिला मुख्यालय से 120 किमी दूर 50,000 आबादी का कस्बा है. यहां के हॉट स्पॉट वंशिका रेस्त्रां के मालिक गौरीशंकर को अब ज्यादा व्यस्त रहना पड़ रहा है, क्योंकि आसपास के बीसियों गांवों के लोग भी अब उनके यहां चाउमीन, बर्गर, पिज्जा, पास्ता का ऑर्डर भेजने लगे हैं.
देश की नई तस्वीर
बदलते समय में मध्य वर्ग के पास आ रही समृद्धि के चलते उभर रही यह उत्तर भारत की एक नई तस्वीर है. पेशे से रियल एस्टेट डेवलपर ग्वालियर शहर के 42 वर्षीय अरविंद अग्रवाल के पास दो मर्सिडीज समेत आठ कारें पहले से हैं, लेकिन पिछले दिनों 2300 सीसी की ट्राएम्फ रॉकेट-3 बाइक 23 लाख रुपये में खरीदी और अब वे उसी पर सवार होकर ग्वालियर की सड़कों पर निकलते हैं. बिहार में आज सालाना दस लाख से ज्यादा लोग हवाई सफर कर रहे हैं. नवादा के टायर व्यवसायी गोपाल प्रसाद वीकएंड में 25 लाख रुपये की फॉर्चूनर में बैठकर 100 किमी दूर पटना के किसी बढ़िया होटल में खाना खाने जाते हैं.
यानी अब कंजूस, मक्खीचूस, चुग्गस, निन्यान्नवे का फेर, चमड़ी चली जाए पर दमड़ी न जाए सरीखे जुमले हमारी शब्दावली से गायब हो रहे हैं. राजस्थान के कई छोटे-छोटे शहरों में अब खास शादी के मौके पर वर-वधू पक्ष के लोगों को डांस सिखाने के लिए एक्सपर्ट बुलाए जा रहे हैं.
ब्रांडेड रोटी ब्रांडेड कपड़ा
समृद्धि की चमक में कुछ जगहों पर रंगदारी का खतरा भी आया है. गोरखपुर और आसपास मर्सिडीज, ऑडी और बीएमडब्ल्यू की बिक्री तेजी से बढ़ने के बावजूद ये लोग इस बारे में एक लफ्ज भी बोलना नहीं चाहते. एक व्यापारी नेता तो कहते हैं, 'यहां रंगदारों पर अंकुश लगाने में प्रशासन नाकाम है.' कई बदमाश जेल मैं बैठे हुए भी बड़े आराम से रंगदारी वसूल रहे हैं. इस खर्चीलेपन ने कई नियोजकों का गणित गड़बड़ा दिया है.
यूपी, उत्तराखंड और हरियाणा के एक टाउनशिप डेवलपर अरविंदर सिंह बुरी तरह इसके शिकार हुए हैं: 'आज ही जी भरकर जी लेने की ख्वाहिश में इन मध्य वर्गीय लोगों ने घर खरीदने के सपने को पीछे धकेल दिया है. वे किराए के मकाने में रहकर ब्रांडेड रोटी और कपड़े पर जमकर खर्च रहे हैं. कई दिक्कतों के बावजूद हम अपने प्रोडक्ट (फ्लैट) रीडिजाइन करने पर मजबूर हो रहे हैं.' इसे कहते हैं जीने की तमन्ना.
—साथ में जय नागड़ा, कुमार हर्ष, अशोक प्रियदर्शी, समीर गर्ग, विजय महर्षि और रामप्रकाश मील