झारखंड में काफी जद्दोजहद के बाद भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले शिबू सोरेन की कुर्सी बची रहनी मुश्किल लगती है क्योंकि राजग द्वारा लाये गये कटौती प्रस्ताव की मुखालफत के बाद भगवा पार्टी ने राज्य की गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले लिया है.
सोरेन तीन बार मुख्यमंत्री बने लेकिन एक बार भी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये. उनके कार्यकाल की गिनती कुछ दिन और महीनों में ही सीमित रह गयी. 30 दिसंबर 2009 को शपथ लेने वाले सोरेन की मुख्यमंत्री की कुर्सी मात्र चार महीने में ही डगमगा गयी.
केंद्रीय कोयला मंत्री के रूप में भी 2004 में सोरेन को मंत्री पद की कुर्सी बीच में गंवानी पड़ी थी . संप्रग सरकार में मंत्री पद से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था.
पहली बार वह दो मार्च 2005 में मुख्यमंत्री बने थे और केवल नौ दिन तक पद पर रहे. दूसरे कार्यकाल में 27 अगस्त 2008 से वह चार महीने के आसपास ही अपनी सरकार बचा सके. इस प्रकार नवोदित राज्य के मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा करने का उनका सपना फिर अधूरा रह गया.
घनी दाढ़ी वाले इस आदिवासी नेता को ‘दिशोम गुरु’ के नाम से जाना जाता है. उन पर गिरिडीह जिले में दोहरे हत्या का एक मामला दर्ज है.
हालांकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें अपने निजी सचिव शशिनाथ झा की हत्या के 1994 के मामले में बरी कर दिया लेकिन सीबीआई इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दे सकती है.