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सांप्रदायिकता के विरोध के नाम पर लेफ्ट की छतरी तले जुटे नीतीश कुमार और मुलायम सिंह

दिल्ली में सांप्रदायिक ताक़तों को सत्ता में रोकने से नाम पर आज इतना बड़ा जमावड़ा लगा कि बीजेपी और कांग्रेस की नज़रें टेढ़ी हो गई हैं. 14 दलों के दिग्गज नेताओं ने तालकटोरा स्टेडियम से ताल ठोककर कहा है कि धर्म के धंधेबाज़ों को सत्ता में आने से रोकने के लिए जो भी करना पड़ेगा करेंगे.

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नीतीश कुमार
नीतीश कुमार

दिल्ली में सांप्रदायिक ताक़तों को सत्ता में रोकने से नाम पर आज इतना बड़ा जमावड़ा लगा कि बीजेपी और कांग्रेस की नज़रें टेढ़ी हो गई हैं. 14 दलों के दिग्गज नेताओं ने तालकटोरा स्टेडियम से ताल ठोककर कहा है कि धर्म के धंधेबाज़ों को सत्ता में आने से रोकने के लिए जो भी करना पड़ेगा करेंगे. इनमें देश के दो सबसे बड़े राज्यों यूपी और बिहार में सत्ता पर काबिज दल समाजवादी पार्टी औऱ जनता दल यूनाईटेड भी शामिल थे. साथ में थीं इस आयोजन की कर्ता-धर्ता और तीसरे मोर्चे की सदाबहार अलंबरदार लेफ्ट पार्टी. अब दो बड़े सवाल खड़े होते हैं. पहला तो ये कि क्या ये तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट है और दूसरा ये कि इस जमावड़े की नजर में सांप्रदायिक कौन है? सिर्फ मोदी, सिर्फ बीजेपी, सिर्फ कांग्रेस या फिर तीनों.

मुलायम ने याद किए ‘मुल्ला’ टैग के दिन
यहां बोलने वालों के बयानों के सहारे ये समझते हैं. यूपी के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद लगातार आलोचना झेल रही सपा के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव सांप्रदायिकता के खिलाफ अपनी लड़ाई का बखान करते हुए यहां तक बोल गए. क्या-क्या नहीं सुना मैंने. लोग यहां तक बोलते थे कि मुल्ला मुलायम सिंह यादव के मां या बाप में कोई मुसलमान है. इस इमोशनल बयान के बाद मुलायम ने बताया कि कैसे यूपी में लगातार उनकी सरकार के खिलाफ षड्यंत्र किए जा रहे हैं. फिर भी वह मुस्लिमों की भलाई और बीजेपी की तरफ कड़ाई से पीछे नहीं हटेंगे. उन्होंने बीजेपी विधायकों की गिरफ्तारी का भी हवाला दिया. संदेश साफ था. मुसलमानों से ज्यादा देश भर में सांप्रदायिकता यानी कथित तौर पर बीजेपी से लड़ने वाले दलों को. यूपी में तो हमें ही साथ लेना होगा.

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नीतीश ने दिए तीसरे मोर्चे के संकेत
फिर बारी आई मोदी की हुंकार रैली के बाद से पारा चढ़ाए घूम रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की. उन्होंने फिर फासीवाद की टेक दोहराई और मोदी के बयान, चुन-चुनकर साफ करोगे को यहां दोहराया और उपस्थित जमात से पूछा कि ये किस किस्म का लोकतंत्र बनाया जा रहा है. नीतीश ने कहा कि पूरे देश में सांप्रदायिक भाईचारा बिगाड़ने की कोशिश हो रही हैं. लेकिन हम ऐसा होने नहीं देंगे. क्या ये संभावित तीसरे मोर्चे की नींव है? हवा में तैरते इस सवाल को भी नीतीश ने लपका और अपने भाषण के दौरान बोले कि यह बार-बार पूछा जा रहा है कि क्या यह सम्मेलन एक नया मंच बनाने के लिए आयोजित किया गया है? अभी तक तो यह मामला नहीं है. लेकिन हमें सोचना है कि फासीवाद, साम्प्रदायिकतावाद और आतंकवाद की शक्तियों को शिकस्त देने के मुद्दे के आधार पर सभी लोकतांत्रिक शक्तियों को एकता बनानी चाहिए. 'बाकियों के लिए नीतीश मौजूदा सियासी हालात में इससे साफ संदेश नहीं दे सकते थे.

इस दौरान लेफ्ट के नेताओं प्रकाश कारत और एबी वर्धन ने वही पुराना राग अपनाया कि देश पूंजीवादी शक्तियों का गुलाम हो गया है. सांप्रदायिकता का जहर फैल रहा है और सभी सेकुलर दलों को इसके खिलाफ मिलकर लड़ना होगा. सम्मेलन में जेडीयू के शरद यादव, जेडी एस के एचडी देवेगौड़ा, बीजू जनता दल के जय पांडा, असम गण परिषद के प्रफुल्ल कुमार महंत और झारखंड विकास मोर्चा के बाबू लाल मरांडी समेत कोई बीस बड़े नेता मौजूद थे.

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कुल जमा 102 हैं ये
जिन दलों ने तालकटोरा स्टेडियम में सांप्रादायिक सियासत के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन किया है संसदीय राजनीति में उनकी मौजूदा ताकत 102 सदस्यों की है. इस ताकत को नज़रअंदाज़ करना न तो कांग्रेस के लिए मुनासिब है और न बीजेपी के लिए मुमकिन. बीजेपी कुछ भी कहे लेकिन 2014 के लिए चौदह दलों की उस चुनौती में उसके लिए साथियों की ढेर सारी संभावनाओं का अंत है. और कांग्रेस का संकट ये है कि अगर इस जमावड़े ने जनता के बीच अपनी एकजुटता का झंडा लहरा दिया दिया तो उसे अपनी सियासत और सोच दोनों के खरीदार का बाज़ार सिकुड़ जाएगा.

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