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ये दिल्ली का तख्त है किसी लौंडी का दिल नहीं

दिल्ली के उप-राज्यपाल नजीब जंग बड़े दिलचस्प आदमी हैं. जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कुलपति रहे जंग साहब अचानक दिल्ली के उप-राज्यपाल बनाए गए और बाकमाल बात ये रही कि तबसे दिल्ली लगातार सुर्खियों में ही रही है शांति से नहीं. हालांकि इसमें जंग साहब की कोई खता नहीं है लेकिन फिर भी जब दिल्ली में सत्ता की जंग भीषण से भीषणतम होती जा रही थी तो हमने सोचा कि आखिर क्या है लोचा

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दिल्ली के उप-राज्यपाल नजीब जंग बड़े दिलचस्प आदमी हैं. जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कुलपति रहे जंग साहब अचानक दिल्ली के उप-राज्यपाल बनाए गए और बाकमाल बात ये रही कि तबसे दिल्ली लगातार सुर्खियों में ही रही है शांति से नहीं. हालांकि इसमें जंग साहब की कोई खता नहीं है लेकिन फिर भी जब दिल्ली में सत्ता की जंग भीषण से भीषणतम होती जा रही थी तो हमने सोचा कि आखिर क्या है लोचा. किसी ने कहा भला जंग के रहते शांति कैसे हो सकती है पर यह बेहद छिछली तुकबंदी थी इसलिए हमने इस पर ध्यान नहीं दिया.

नजीब जंग ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ने के बाद लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में दाखिला ले लिया. अपने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत कई नोबेल पुरस्कार विजेता यहीं से पढ़े हैं. इसके बाद जंग ने एनर्जी के क्षेत्र में काफी काम किया. अंबानी परिवार के साथ भी इनकी खूब छनती है. राज्यपाल बनने के बाद इन्होंने दिल्ली में महिलाओं के लिए भी हेलमेट अनिवार्य कर दिया. हालांकि सिख महिलाओं को इससे अलग रखा. इस फैसले पर लोगो ने नजरें टेढ़ी भी की लेकिन जंग साहब आजाद तबीयत के मालिक हैं. तमाम जानकारियां आ रहीं थी लेकिन दिल्ली के दंगल और जंग साहब के कनेक्शन का पता नहीं मिल रहा था. तभी जामिया के छात्र रहे मित्र ने जंग साहब का किस्सा सुनाया कि जब वो जामिया के कुलपति थे तो उन्होंने एक नाटक में मुगल बादशाह अकबर का रोल किया था. अपने इस किरदार के लिए जंग साहब काफी मकबूल किए गए थे. बस गुरु हो गया यूरेका, सारी गणित तो यहां उलझी हुई है और हम जाने कौन कौन सी पीडीया पलट कर इनकी पीढ़ियों का हिसाब गिन रहे थे. दिल्ली के सियासी नाटक का सारा खेल जंग साहब के जामिया में किए गए नाटक से जुड़ता है.

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याद कीजिए मशहूर फिल्म मुगल-ए-आजम. आपको न सही आपके पिताजी को जरूर इसका एक एक डॉयलॉग याद होगा. मुगल-ए-आजम फिल्म के संवादों के माध्यम से आप बवाल-ए-दिल्ली को आसानी से समझ सकते हैं. फर्ज कीजिए कि अपने जंग साहब बादशाह अकबर हैं, दिल्ली है अनारकली और भाजपा और आम आदमी पार्टी दोनों दावा कर रहे हैं असली सलीम होने का. कांग्रेस को उसके प्रदर्शन के हिसाब से अकबर की दादी का किरदार दे देते हैं. आप कहेंगे वो तो फिल्म में थी ही नहीं तो बंधु कांग्रेस भी दिल्ली में कहां नजर आ रही है. अब जरा चुनावों के बाद की दिल्ली याद कीजिए केजरीवाल साहब सत्ता के 'शीघ्रपतन' के शिकार हुए और दिल्ली में केंद्रीय भूमिका में आ गए अपने जंग साहब. उसके बाद क्या हुआ ये आप नीचे लिखे संवादों से समझिए.

आप का सलीम: मैं तुम्हारी आंखों में अपनी मोहब्बत का इकरार देखना चाहता हूं अनारकली.
अनारकली(दिल्ली): डूड आई एम कन्फ्यूजड लेट मी सी इनी मीनी माइनी मो..
सलीम भाजपाई: अनारकली मैं तुम्हारी आंखों में अपनी मोहब्बत का रुखसार देखना चाहता हूं.
अनारकली: अंकल ठंड पाओ और बात बोलो वही जो मैं समझ जाऊं.
अकबर: तुम्हारी मौजूदगी नाफरमानी की दलील है गुस्ताख.
सलीम भाजपाई: शंहशाह हमने अनारकली को अपनी जिंदगी मुकर्रर कर लिया है.
अकबर(जंग): हमारी दिल्ली कोई तुम्हारा दिल नहीं कि कोई लौंडी इसकी मलि‍का बन सके.
आप का सलीम: मेरा दिल भी कोई जामिया नहीं है जिस पर आप हुकूमत कर सकें.
अनारकली: अंकल तमीज से बात करो ओके.. जानता है मेरा बाप कौन है?
सलीम भाजपाई: बादशाह आपने हमारे रहते हुए इस नकली सलीम को अनारकली की बागडोर दे दी और हम देखते रह गए.
अकबर: और तुम कर भी क्या सकते थे चंपक?
आप का सलीम: अनारकली हमारी थी हमारी है और हमारी ही रहेगी.
अनारकली: एक्सक्यूज मी आए एम शक्ति, तो थोड़ा हवा आने दो. यू नो पिछला वाला बहुत डॉमिनेटिंग हो गया था हाल देख रहे हो न उसका.
अकबर: अनारकली सलीम सौरी सलीम तुझे मरने नहीं देंगे और हम तुझे जीने नहीं देंगे.
आकाशवाणी मन से:  मित्रों दिल्ली में चुनाव होंगे.
और इस तरह दिल्ली के इस नाटक का फैसला हो गया.

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