मोदी सरकार में देश के अंदर पर्याप्त धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे को लेकर दारुल-उलूम-देवबंद पहली बार विचार करने जा रहा है. मुस्लिम धार्मिक नेता और पूर्व सांसद महमूद मदनी ने राइट विंग हिंदू संगठनों से इस्लाम को बचाने को लेकर फतवा जारी करने की अपील की है.
मदनी ने कहा कि मोदी सरकार के एक साल पूरे होने पर 16 मई को दिल्ली में एक रैली आयोजित की जाएगी जिसमें देशभर से धार्मिक नेता पहुंचेंगे. इसी दिन वह फतवा लागू करके एक साल तक चलने वाले अभियान की शुरुआत करेंगे. उनका यह अभियान धार्मिक स्वतंत्रता, अल्पसंख्यकों पर बढ़ रहे हमलों, घर वापसी और बिगड़ते धार्मिक माहौल के खिलाफ होगा.
मदनी ने कहा, 'एक साल बाद जनता जबाव तो मांगेगी ही. धार्मिक स्वतंत्रता देश के सम्मान से जुड़ी है. अगर आप धर्मस्थलों को नहीं बचा सकते तो आप देश को कैसे बचाएंगे.'
क्या ये मदनी की राजनीतिक चाल है?
हालांकि इस फतवा को मदनी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा करार दिया गया है. मदनी के बारे में लगातार अफवाह उड़ती रही है कि वह एनडीए सरकार के साथ बातचीत कर रहे हैं. जवाहर लाल नेहरू की 125वीं जयंती पर पीएम मोदी ने मदनी को भी नेशनल पैनल में शामिल किया है.
मदनी के बदले रंग को देखते हुए राजनीतिक दलों में भी हलचल तेज हो रही है. CSDS के असिस्टेंट प्रोफेसर संजीर आलम ने कहा कि मदनी ने लगातार राजनीतिक दलों पर दबाव बनाने की कोशिश की है. इसका सीधा मतलब ये है कि वह जताना चाहते हैं कि आप मुझे साइडलाइन नहीं कर सकते.
जेडीयू सांसद, केसी त्यागी ने कहा कि मदनी का ये अभियान बिहार में आने वाले चुनावों को ध्यान में रखकर शुरू किया जा रहा है. इससे सेकुलर पार्टियों को कमजोर कर बीजेपी को फायदा पहुंचाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन जनता परिवार बीजेपी को बिहार में रोकने के लिए काफी है.