मध्यप्रदेश सरकार ने सोमवार को 'जल सत्याग्रह' कर रहे किसानों से अनुरोध किया कि वे अपना विरोध प्रदर्शन बंद कर उन्हें आवंटित की गई भूमि को स्वीकार करें.
मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में किसान नर्मदा के पानी में कमर तक डूबे खड़े हैं और इस ‘जल सत्याग्रह’ का आयोजन कर रहे हैं. वे ओमकारेश्वर बांध की उंचाई बढ़ाए जाने के खिलाफ यह आंदोलन कर रहे हैं, क्योंकि इसकी चपेट में उनकी जमीन आएगी. आज उनका आंदोलन 31वें दिन में प्रवेश कर गया. उनकी मांग है कि इससे प्रभावित हुए लोगों का पुर्नवास किया जाए.
नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के प्रमुख सचिव रजनीश वैश ने बताया, 'मध्यप्रदेश सरकार के पास ओंकारेश्वर बांध के विस्थापितों को आवंटित करने के लिए खेती करने योग्य 5,000 हेक्टेयर भूमि है.' वैश ने कहा कि इस भूमिबैंक में से बांध से प्रभावित होने वाले 213 लोगों को दो हेक्टेयर प्रति व्यक्ति के हिसाब से भूमि आवंटित कर दी गई है, लेकिन वह इसे स्वीकार करने को तैयार ही नहीं.
उन्होंने बताया कि सरकार ने नर्मदा के किनारे 350 हेक्टेयर और खेती योग्य जमीन की पहचान की है. वे आगे आकर इसे स्वीकार करें. हालांकि नर्मदा बचाओ आंदोलन के साथ काम कर रही आम आदमी पार्टी इन जल सत्याग्रहियों का समर्थन कर रही है. उसने राज्य सरकार पर आरोप लगाया है कि वह इनकी खेती की जमीन लेकर उन्हें बंजर जमीन दे रही है.
आम आदमी पार्टी के खंडवा क्षेत्र के सचिव दलजीत सिंह खनूजा ने कहा कि आंदोलनकारियों के पानी में खड़े रहने से उन्हें त्वचा की बीमारियां हो गई हैं. ओंकारेश्वर परियोजना से खंडवा क्षेत्र में सिंचाई की व्यवस्था होती है और बिजली उत्पादन भी.
इनपुट: भाषा