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IIM की राह पकड़ते इंजीनियर, विकास या चिंता का सबब?

देश में युवा इंजीनियरों में एक नई टेंडेंसी पनप रही है, जो निश्चित तौर पर चिंताजनक मानी जा रही है. ये नए इंजीनियर बेहतर फ्यूचर के लिए अपने स्टडी एरिया में आमूलचूल बदलाव करके मैनेजमेंट इंस्टीट्यूशन्स की सीढ़ियां चढ़ने में अब जरा भी नहीं हिचक रहे हैं.

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IIM छात्र
IIM छात्र

देश में युवा इंजीनियरों में एक नई टेंडेंसी पनप रही है, जो निश्चित तौर पर चिंताजनक मानी जा रही है. ये नए इंजीनियर बेहतर फ्यूचर के लिए अपने स्टडी एरिया में आमूलचूल बदलाव करके मैनेजमेंट इंस्टीट्यूशन्स की सीढ़ियां चढ़ने में अब जरा भी नहीं हिचक रहे हैं.

इंजीनियरों की युवा जमात के पेशेवर रास्ते से हटकर इस तरह मैनेजमेंट की ओर रुख करने की स्वाभाविक वजह मोटी तनख्वाह और ‘सफेद कॉलर वाली’ नौकरी का बढ़ता आकर्षण माना जा रहा है. लेकिन यह रुझान देश के अकैडमिक और कामकाजी हलकों में चिंताजनक असंतुलन और असंतोष पैदा कर रहा है.

इंदौर के आईआईएम के ताजा आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि देश के टॉप बी.स्कूलों में इंजीनियरिंग वाले स्टूडेंट्स का दबदबा किस कदर बढ़ता जा रहा है. 2013-15 के लिए आईआईएम-आई के पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम (पीजीपी) के नए बैच में एडमिशन पाने वाले 457 स्टूडेंट्स में से 409 की अकैडमिक प्रोफाइल इंजीनियरिंग की है, जबकि बाकी 48 छात्र ‘गैर इंजीनियर’ दर्जे के हैं. यानी इस बैच के तकरीबन 90 परसेंट स्टूडेंट्स ऐसे हैं, जिन्होंने इंजीनियरिंग के अपने मूल स्टडी एरिया में आगे बढ़ने के बजाय आईआईएम से मैनेजमेंट की डिग्री हासिल करने का फैसला किया.

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इस चलन पर रोशनी डालते हुए मशहूर करियर सलाहकार डॉ. जयंतीलाल भंडारी ने बताया, ‘मेरा अनुमान है कि देश भर के आईआईएम के छात्रों में से करीब 75 परसेंट स्टूडेंट्स इंजीनियरिंग की पृष्ठभूमि के हैं. इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद मैनेजमेंट की पढ़ाई की प्रवृत्ति बढ़ने की स्वाभाविक वजह शानदार सैलरी पैकेज की चाह है.’

भंडारी ने कहा कि मोटे तौर पर देखा जा रहा है कि ज्यादातर इंजीनियर विशुद्ध निर्माण उपक्रमों में नौकरी के मुकाबले मैनेजमेंट के नीति निर्धारक और निर्णायक पदों पर आसीन होना चाहते हैं. इसलिए वे मैनेजर की ‘सफेद कॉलर वाली नौकरी’ को तरजीह दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि आईआईएम और अन्य प्रतिष्ठित बी-स्कूलों में प्रवेश के लिए होने वाले कॉमन एडमिशन टेस्ट (कैट) में इंजीनियरों की सफलता की दर दूसरे विषयों की पृष्ठभूमि वाले प्रतिभागियों के मुकाबले बेहद ज्यादा है.

यह भी देश के टॉप बी-स्कूलों में इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि वाले छात्रों के बढ़ते दबदबे का बड़ा कारक है. भंडारी हालांकि मानते हैं कि यह चलन देश के अकैडमिक और कामकाजी जगत के लिए ठीक नहीं है. इस बारे में गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘इस चलन से उन गैर इंजीनियर उम्मीदवारों में असंतोष और कुंठा बढ़ रही है, जो आईआईएम में दाखिले के लिए तैयारी कर रहे हैं. गैर इंजीनियिरिंग विषयों के उपाधिधारक छात्र को लग रहा है कि आईआईएम जैसे टॉप मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में उनके एडमिशन के मौके लगातार कम होते जा रहे हैं.’

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