इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के सेशन, 'High Growth or High Dole' में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा कि देश की तरक्की के लिए आयोग बेहतर प्लानिंग करता है, पर कई बार इसका फायदा लोगों तक नहीं पहुंचा पाता.
मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा कि सीधे-सीधे आम जनता से जुड़ी सरकारी योजनाओं और सेवाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़नी चाहिए.
मनरेगा समेत अन्य सरकारी योजनाओं का जिक्र करते हुए मोंटेक ने कहा कि कई बार गड़बडि़यों की वजह से जरूरतमंदों को लाभ नहीं मिल पाता, पर इसकी वजह से योजनाओं पर सवाल खड़े नहीं किए जा सकते.
आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा कि एनडीए सरकार ने साल 2004 में ही पेट्रोल पर दी जाने वाली सब्सिडी खत्म करने की कोशिश की थी. उसके बाद यूपीए को इस योजना को अमलीजाना पहनाने के लिए 10 साल तक मशक्कत करनी पडी.
मोंटेके ने कृषि क्षेत्र को दी जाने वाली सब्सिडी का कड़ा विराध किया, लेकिन साथ ही यह देखे जान की बात कही कि भारत के संदर्भ में यह नीति कितना उचित है. भारत में किसानों के हित में दी जाने वाली सब्सिडी के बारे में अहलूवालिया ने कहा कि इस बारे में राज्य सरकारों को निर्णय करना होता है. राज्य सरकारें इस बारे में फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं.
उन्होंने कहा कि विकास के मसले पर सभी राजनीतिक दलों को एकमत होकर निर्णय लेना चाहिए.
कॉन्क्लेव के इसी सेशन में कोलंबिया युनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अरविंद पानागढि़या ने कहा कि विकास के लिए हमारे दिलों में जज्बा है, क्योंकि हम गरीबों से गरीबों सहानुभूति रखते हैं. भारत की विकास की क्षमताओं पर लिखी गई अपनी किताबों का जिक्र करते हुए उन्होंने ये बातें कहीं.
प्रोफेसर अरविंद ने देश की जनता को और ज्यादा ताकत सौंपे जाने की वकालत करते हुए कहा कि यह फैसला लोगों पर ही छोड़ दिया जाना चाहिए कि वे अपने पैसे का किस तरह इस्तेमाल करते हैं.