बीजेपी के नए पोस्टर बॉय नरेंद्र मोदी यूपी से लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे. इसके कयास तो कुछ महीनों से लगाए जा रहे थे, मगर उनके खास सिपहसालार अमित शाह को यूपी का प्रभारी बनाए जाने के बाद यह लगभग तय हो गया था.
फिर जद्दोजहद शुरू हुई, उस सीट की पहचान करने की, जिस पर मोदी के चुनाव लड़ने से पूरे यूपी में हवा तेज चले भगवा दल के पक्ष में. पार्टी सूत्रों के मुताबिक लखनऊ, बनारस और इलाहाबाद ऐसी सीटें हैं, जिन्हें मोदी के लिए पहले चरण में शॉर्ट लिस्ट किया गया. इसमें लखनऊ का पलड़ा सबसे ज्यादा भारी है.इसकी तस्दीक हुई बुधवार को, जब अमित शाह बतौर पार्टी महासचिव और प्रदेश प्रभारी पहली बार लखनऊ पहुंचे.
मोदी की सुगबुगाहट एक समवेत स्वर में बदल गई. अब बचा है तो सिर्फ औपचारिक ऐलान.
अमित शाह ने सिर्फ इतना ही कहा कि ‘2014 में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की जो सरकार बनेगी, उसकी मजबूत नींव यूपी से डाली जाएगी’. पार्टी रणनीतिकारों के मुताबिक ये सिर्फ और सिर्फ तभी मुमकिन है, जब खुद नरेंद्र मोदी यहां से चुनाव लड़ें.
फिलहाल उत्तर प्रदेश की 80 में से बीजेपी के पास सिर्फ 10 सीटें हैं. पार्टी के आंतरिक सर्वे के मुताबिक अगर मोदी यूपी से चुनाव लड़ते हैं, तो ये आंकड़ा शर्तिया तौर पर 30 के पार पहुंच सकता है. खुद पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी चाहते हैं कि मोदी यूपी से चुनाव लड़ें. सूत्रों के मुताबिक राजनाथ इस इल्जाम से तंग आ गए हैं कि वे जिस सूबे से आते हैं, वहीं उनकी पार्टी टिड्डी फिसड्डी बन गई है.
शाह के करीबियों के मुताबिक मोदी लखनऊ से ही चुनाव लड़ेंगे. वजह सिर्फ तय जीत नहीं है. दरअसल पार्टी में इस सीट का प्रतीकात्मक महत्व भी है. यह सीट 1991 से अटल बिहारी वाजपेयी को संसद पहुंचा रही थी. 2009 में जब वाजपेयी स्वास्थ्य खराब होने के चलते चुनाव लड़ने की हालत में नहीं थे, तो यहां से पार्टी हैवीवेट और अटल के खास लालजी टंडन चुनाव लड़े. प्रचार के दौरान टंडन ने बार बार कहा कि मैं तो सिर्फ अटल जी की खड़ाऊं संभाल रहा हूं. ऐसे में जब केंद्र में मोदी अटल की विरासत संभालने का दावा कर रहे हैं, तो इसे पुख्ता करने के लिए लखनऊ से बेहतर सीट कौन सी हो सकती है.
वाजपेयी से पहले भी यह सीट वीआईपी रही है. इंदिरा गांधी की मामी और केंद्र में काबीना मंत्री रही शीला कौल भी यहां से तीन बार सांसद चुनी गई हैं. इमरजेंसी के बाद हुए 1977 के चुनाव में यहां से पीएम पद के तगड़े दावेदार हेमवती नंदन बहुगुणा भी चुनाव जीत संसद पहुंचे हैं.
मौजूदा हालत की बात करें, तो बीजेपी बहुत सुकून की सांस नहीं ले सकती. 2012 के पहले तक हाल ये था कि शहर की पांचों सीटों पर बीजेपी कमोबेश झाड़ू लगा देती थी. मगर पिछले चुनाव में यहां की सिर्फ एक ही सीट कमल के हिस्से आई. इस सीट पर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्र चुनाव लड़े थे. एक सीट पर पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी काबिज हैं. पूर्व आईआईएम प्रोफेसर और अब अखिलेश सरकार में मंत्री अभिषेक मिश्र भी यहीं से विधायक हैं. हालांकि पार्टी यह कहकर अपनी पीठ थपथपा सकती है कि स्थानीय निकाय चुनाव में बीजेपी के दिनेश शर्मा ने बतौर मेयर राजधानी पर कब्जा बरकरार रखा.