गोवंश को लेकर संजीदा केंद्र की मोदी सरकार भविष्य में तापमान वृद्धि के विपरीत प्रभावों के मद्देनजर देशी गोवंश में जलवायु के अनुकूल क्षमता का अध्ययन कर रही है. जिससे पशुपालन से जुड़े किसानों को जलवायु परिवर्तन की समस्याओं से निपटने में सक्षम बनाया जा सके.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने कृषि संबंधी स्थायी समिति को बताया है कि प्रयोगशाला परिक्षणों मे पाया गया है कि साहीवाल नस्ल की गायों में गर्मी का दबाव सहने की उत्कृष्ट क्षमता होती है.
सरकार का दावा है कि विदेशी नस्लों और इनकी हाईब्रिड (संकर) नस्लों की तुलना में देश के विभिन्न हिस्सों में पाई जाने वाली देशी नस्ल की गायों में तापमान सहने और रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा है. चूंकि विदेशी या संकर नस्ल की गायों में दुग्ध उत्पादन क्षमता देशी नस्लों से ज्यादा है, इसलिए देश पशुओं में आनुवांशिक सुधार का कार्यक्रम अनिवार्य हो गया है.
पिछले दिनों लोकसभा में देश में खाद्य सुरक्षा के लिए भौगोलिक परिस्थितिओं पर आधारित कृषि संबंधी स्थायी समिति एक व्यापक रिपोर्ट पेश की गई थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2070 से 2099 के दौरान मौजूदा तापमान की तुलना में 2 से 6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी. जिससे गोवंश और भैसों के दुग्ध उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
रिपोर्ट का दावा है कि तापमान वृद्धि का सबसे ज्यादा असर उत्तर भारत में पड़ेगा. जिससे यहां के दुग्ध उत्पादन में 63% गिरावट आयेगी. रिपोर्ट में बताया गया है कि देशी गोवंश की कई नस्लों में तापमान वृद्धि से जुड़े जलवायु परिवर्तनों का सामना करने की क्षमता है. गोवंश की देशी नस्लों में राठी, गीर, धालीवाल, थारपाकर, लाल सिंधि ज्यादा दूध देने वाली नस्लें हैं और इनका उपयोग देशी पशुओं की अन्य नस्लों के सुधार में किया जा सकता है.
रिपोर्ट के अनुसार ज्यादा दुग्ध उत्पादन क्षमता से किसानों की संकर नस्ल के गोवंशों पर निर्भरता बढ़ गई है. लिहाजा समिति की राय है कि देशी नस्लों की ग्रीष्म रोधी क्षमता देखते हुए उनके विशेष गुणों की पहचान करने के साथ इनकी ब्रीडिंग, टीकाकरण के बारे में व्यापक योजना शुरू करने का आवश्यकता है.