मदरसों के आधुनिकीकरण की मांग लगातार चली आ रही है. मोदी सरकार में मदरसों में इस्लामिक तालीम के अलावा बुनियादी शिक्षा पर जोर दिए जाने के बाद अब मुस्लिम समाज ने भी मदरसों में आधुनिक शिक्षा की मांग की है.
मुस्लिम समाज के बड़े संगठनों में से एक जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने दिल्ली में बुलाए गए अपने एकदिवसीय अधिवेशन में प्रस्ताव पास करते हुए कहा है कि स्कूलों की तर्ज पर ही मदरसों में बच्चों को इस्लामिक तालीम के अलावा बुनियादी दूसरी शिक्षा भी दी जाए.
देवबंदी मदरसों में इस्लामिक शिक्षा के अलावा साधारण स्कूलों जैसी पढ़ाई भी होती है, लेकिन अब बड़े स्तर पर इसकी मांग की जा रही है. जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के नेता महमूद मदनी ने अपने बयान में कहा, 'जरूरत है मदरसों में भी अब आधुनिक शिक्षा लागू हो और मदरसों की पढ़ाई पूरी करते-करते बच्चों को 12वीं तक पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए और उन्हें भी दूसरे छात्रों के समकक्ष मजबूत किया जाए.'
पूर्व समाजवादी पार्टी नेता और जमीयत उलेमा ए हिंद के अधिवेशन में आए मेहमान सदस्य कमाल फारूखी ने भी आजतक से बातचीत करते हुए कहा कि अब जरूरत है मदरसों में इस्लामी तालीम के अलावा आधुनिक शिक्षा को जगह दी जाए.
कमल फारुकी ने कहा कि साधारण स्कूलों की तरह मदरसों में भी कंप्यूटर और दूसरे विषयों की तालीम बच्चों को मिले ताकि वह अपनी उम्र के दूसरे बच्चों के बराबर मजबूत हो सकें.
मदरसों के आधुनिकीकरण पर कई मौलाना एतराज जता चुके हैं. उनका मानना है कि इससे इस्लामिक शिक्षा व्यवस्था पर असर पड़ेगा, जबकि मुस्लिम समाज का एक बड़ा तबका मानता है कि मदरसों में बच्चों को दूसरे विषयों की या साधारण स्कूलों जैसी तालीम भी मिलनी चाहिए. ताकि उन्हें मजहब के अलावा दूसरे विषयों का ज्ञान भी मिल सके.
जमीयत-उलेमा-ए-हिंद का कहना है कि उससे जुड़े तमाम मदरसों में इस्लामी शिक्षा के साथ-साथ स्कूली तालीम भी दी जा रही है, लेकिन अब ज्यादा से ज्यादा मदरसों में आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है ताकि मदरसों के बच्चे पीछे न रह जाएं.