मालेगांव धमाकों के आरोपियों पर अब मकोका का शिकंजा कस चुका है. नासिक की अदालत ने मालेगांव केस में महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) लगाने की इजाजत दे दी है. एटीएस के लिए यह एक बड़ी कामयाबी मानी जा रही है.
नासिक कोर्ट ने बचाव पक्ष की दलीलों को दरकिनार करते हुए कहा कि इस मामले पर मकोका लगाया जाना ठीक है. नासिक कोर्ट के इस फैसले के बाद मालेगांव मामले का ट्रायल अब मुंबई की एक स्पेशल मकोका अदालत में होगा. संगठिक अपराध और आतंकवाद से निपटने के लिए बयाना गया मकोका बेहद सख्त कानून माना जाता है. मालेगांव मामले के आरोपियों के लिए इससे बुरी खबर नही हो सकती थी.
मकोका लगाए जाने के बाद मालेगांव के सभी आरोपियों के लिए अब जमानत हासिल करना बेहद मुश्किल होगा क्योंकि इस कानून के तहत जमानत के प्रावधान भी बेहद शख्त हैं. मकोका तहत अगर सुनवाई में मालेगांव के आरोपी अगर छोटे से छोटे अपराध के लिए भी दोषी करार दिए जाते हैं तो उन्हें कम से कम पांच साल कैद और पांच लाख रुपये का जुर्मान देना होगा. इस कानून के तहत अधिकतम सजा मौत या उम्रकैद की हो सकती है.
मालेगांव के आरोपियों के लिए ट्रायल का रास्ता भी बेहद मुश्किल हो गया है, क्योंकि मकोका के तहत सुनवाई में धारा 164 के तहत किसी मजिस्ट्रेट के सामने दिया गया आरोपी का इकबालिया बयान भी सबूत के तौर पर लिया जाता है. ऐसे में अगर आरोपी बाद में अपने बयान से पलट भी जाए तो ट्रायल पर इसका कोई असर नहीं होगा. इतना ही नहीं मामले में किसी सह-अभियुक्त का इकबालिया बयान भी अदालत में सरकारी वकील के लिए बेहद कारगर हथियार होता है.
जाहिर है मालेगांव मामले में मकोका लगाए जाने के बाद साध्वी, कर्नल पुरोहत, दयानंद पांडे समेत सभी 11 आरोपियों के लिए अब बच निकलना बेहद मुश्किल होगा. अब एटीएस के लिए भी सहुलियत ज्यादा हो जाएगी क्योंकि अब उसे आरोपियों को बार बार नासिक ले जाने की जहमत नहीं उठानी होगी. बल्कि अब सभी आरोपियों का ट्रायल मुंबई की ही मकोका अदालत में होगा.