भारतीय रेलों में टॉयलेट लगने की बात लगभग सौ साल पुरानी है. लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भारत में पहली ट्रेन चलने के पचास साल बाद टॉयलेट की जरूरत महसूस हुई. लेकिन यह ख्याल ब्रिटिश हुकूमत को एक करारा पत्र मिलने के बाद आया. इस पत्र को 1909 में एक यात्री ने लिखा था. आईए जानते हैं ऐसा क्या था उस पत्र में?

1909 में
ओखिल चंद्र सेन नामक एक यात्री पैसेंजर ट्रेन से यात्रा कर रहे थे. उस दौरान हुए
बुरे अनुभवों को लेकर उन्होंने साहिबगंज रेल डिवीजन के ऑफिस को एक पत्र लिखा.
पत्र कुछ यूं था-
"प्रिय श्रीमान,
मैं पैसेजंर ट्रेन से अहमदपुर स्टेशन आया और मेरा पेट दर्द की वजह से सूज रहा था. मैं शौच के लिए वहां एकांत में गया. मैं वहां निवृत्त हो ही रहा था कि गार्ड ने सीटी बजाना शुरु कर दिया, ट्रेन छूटने वाली थी. मैं एक हाथ में लोटा और दूसरे हाथ में धोती पकड़कर दौड़ा और तभी प्लेटफार्म पर गिर पड़ा. मेरी धोती खुल गई और मुझे वहां मौजूद सभी महिला-पुरुषों के सामने शर्मिन्दा होना पड़ा. मेरी ट्रेन छूट गई और मैं अहमदपुर स्टेशन पर ही रह गया.
यह कितनी बुरी बात है कि एक यात्री शौच के लिए गया हो और ट्रेन का गार्ड कुछ मिनट उसका इंतजार भी नहीं कर सकता. मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि जनता की भलाई के लिए उस गार्ड पर भारी जुर्माना करें. नहीं तो मैं इस प्रकरण की सूचना समाचार पत्रों को दे दूंगा.
आपका विश्वसनीय सेवक
ओखिल चंद्र सेन."