प्रस्तावित बलात्कार निरोधक कानून के कई प्रावधानों पर मंत्रालयों के बंटे होने की बात को सिरे से खारिज करते हुए विधि एवं न्याय मंत्री अश्विनी कुमार ने कहा कि काफी विचार विमर्श के बाद प्रस्तावों को केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष लाया गया है.
कानून मंत्री ने कहा कि कोई कानून बनाने की प्रक्रिया खत्म नहीं हुई है और जब प्रस्तावित आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक 2013 संसद में चर्चा के लिए आयेगा तब सरकार इस पर खुले मन से विचार करेगी.
उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि प्रस्तावित विधेयक महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़ा अध्यादेश का स्थान ले लेगा और इसे समाप्त नहीं होने दिया जायेगा.
अश्विनी कुमार ने कहा, ‘कानून मंत्रालय और गृह मंत्रालय में कोई मतभेद नहीं है. वास्तव में हम भारत के लोगों को एक अति महत्वपूर्ण कानून दे रहे हैं और यह सामने आना चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘जिन तीन या चार मसौदों पर चर्चा की गई, हमने अपना प्रस्ताव दे दिया है और मुझे विश्वास है कि अगले सप्ताह मंत्रिमंडल विधेयक पर विचार कर सकेगी.’
यह पूछे जाने पर कि गुरुवार को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में विधेयक पर विचार क्यों नहीं किया गया, अश्विनी ने कहा कि उस दिन इसे मंत्रिमंडल के समक्ष इसलिए नहीं रखा जा सका क्योंकि गृह मंत्रालय ने विधि मंत्रालय की ओर से पेश किये प्रस्तावों का अध्ययन करने के लिए समय मांगा था. उन्होंने इन बातों को खारिज कर दिया कि उनके मंत्रिमंडल के कई सहयोगी प्रस्तावित विधेयक के कई प्रावधानों का विरोध करेंगे.
विधि मंत्री ने कहा, ‘अध्यादेश पर काफी चर्चा की गई लेकिन इस पर बुनियादी तौर पर कोई आपत्ति नहीं थी. एक या दो आयामों पर विचारों में भिन्नता हो सकती है. यही कारण है कि मंत्रिमंडल की बैठक में इस पर बारिकी से चर्चा होगी.’ उन्होंने कहा कि सरकार 22 मार्च से पहले संसद के दोनों सदनों में विधेयक लाने में सक्षम होगी.
यह पूछे जाने पर कि क्या विधेयक पास हो सकेगा, उन्होंने कहा कि भावनाओं को देखते हुए, ‘मुझे संदेह है कि कोई भी सांसद इसे विफल करना चाहेगा. मुझे विश्वास है कि अध्यादेश को समाप्त होने नहीं दिया जायेगा.’
यौन हमले के स्थान पर बलात्कार शब्द रखे जाने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि सरकार ने इस बारे में पेश किये गए तर्कों की मजबूती का सम्मान किया.
अध्यादेश में बलात्कार के स्थान पर यौन हमला शब्द रखा गया लेकिन महिला समूहों की आपत्तियों के बाद बलात्कार के शब्द को फिर से पेश किया गया. अश्विनी ने कहा कि इसके पीछे के तर्कों पर मंत्रिमंडल को इसे स्वीकार करने के लिए तैयार किया जायेगा.
अध्यादेश एवं विधेयक में वैवाहिक बलात्कार को शामिल नहीं किये जाने के मुद्दे पर विधि मंत्री ने कहा कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि विवाह के बारे में भारतीय विचार में इसे संस्कार और सप्तरिषी सिद्धांत पर आधारित माना गया है.
अश्विनी ने कहा कि यह पश्चिमी विचारों से अलग है जो इसे साझा कानूनों के तहत अनुबंध मानते हैं. उन्होंने कहा कि महिलाएं घरेलू हिंसा कानून जैसे प्रावधानों के तहत सहायता प्राप्त कर सकती हैं.
उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय से जुड़ी स्थायी समिति ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में सरकार के उस विचार का समर्थन किया कि वैवाहिक बलात्कार को प्रस्तावित कानून में शामिल नहीं किया जाना चाहिए.
इसके साथ ही विधि मंत्री ने कहा कि सरकार का इस विषय पर व्यापक चर्चा के बाद संसद के विवेक के आधार पर बदलाव के लिए रूख खुला है.