नियंत्रण नहीं होना ही सभी दुखों का कारण है. अपने इर्द-गिर्द, भूत-वर्तमान में झांकिए तो एहसास हो जाएगा कि मुसीबत आदमी को नाशाद नहीं करती. मुसीबत से निपटने में तो इंसान को मज़ा आता है. मुसीबत पर जब नियंत्रण नहीं हो तो तकलीफ होती है. हमारे अच्छे दिनों को बुरी नज़र लग गई है क्योंकि इराक पर हमारा नियंत्रण नहीं है.
सत्ता के गलियारों में हड़कंप है कि इराक का मसला अगर ज्यादा लंबा खिंचा तो हमारे मसले खिंचेंगे कि हम दांत भींचने के अलावा कुछ कर नहीं पाएंगे. हमारे विकास की भूख को ईंधन चाहिए. सबसे बड़ा हिस्सा वहीं से आता है जहां फिर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं. हमारे हजारों नागरिक मौत और जिंदगी के बीच फंसे गुहार लगा रहे हैं सो अलग. ये हमारा युद्ध नहीं कि जीत लें या हार जाएं. ये तो एक 13 सदी पुराना युद्ध है जो रह-रह कर जाग उठता है.
पैगंबर के दुनिया छोड़ने के बाद से इस्लामी दुनिया का बंटवारा हुआ, फिर करबला के युद्ध में दो फरीक के बीच में खून की लकीरें खिंचीं जो आज रह-रह कर लहू मांगती है. उसी करबला की जमीन पर आज फिर एक बार शिया और सुन्नी आमने सामने हैं. दुनिया आज एक दूसरे से इतनी करीब है कि एक का दर्द दूसरे को सालता है. खाड़ी के पिछले युद्ध में हमारे मुल्क पर ऐसी मुसीबत आई थी कि सोना गिरवी रखने की नौबत आ गई थी. इस बार उतना बुरा हाल भले न हो पर अगर इराक का युद्ध फैलता है तो हमारी उम्मीदों का आसमान सिकुड़ेगा .
पिछले खाड़ी युद्ध में बड़े बुश का अमेरिका शामिल था. दूसरी बार छोटे बुश का. इस बार अमेरिका शामिल भी है और नहीं भी. सऊदी अरब और ईरान भी कुछ ऐसे ही खेल रहे हैं. इस खेल में जान सस्ती होती है और पेट्रोल महंगा हो जाता है. ये इतने तहों में खेला जा रहा है कि इसे समझने के लिए एक रास्ता है डॉ फ्रेंकेस्टाइन की कहानी. ये काल्पनिक कहानी यथार्थ की दुनिया में कितनी बार उभरती-उघरती है. कहानी बहुत सरल है. डॉ फ्रैंकेंस्टाइन ने शोध कर एक नए जानवर को जन्म दिया. उस दानव ने उनका जीना हराम कर दिया. उन्होंने उसे अपनी प्रयोगशाला में जन्म दिया था, प्रिय था इसलिए उसे मारना नहीं चाहते थे पर वह उनके प्रिय लोगों को मारने में सकुचाता नहीं था. उनकी अपनी कृति उनके गले की फांस बन गई थी.
अगर आपने गौर किया हो तो सोचिए अल कायदा कहां गया. दुनिया में दानवीय शक्ति का पर्याय बन चुका आतंकी संगठन जो एक महाशक्ति के अस्तित्व को झिंझोड़ने पर अटल था, पटल से गायब है. ओसामा समुद्र में दफन है. उनके सिपहसालार सब बिखर गए. अच्छी खबर ये है कि अल कायदा को बनाने वालों ने उसे खत्म कर दिया. सऊदी अरब के रियाल से और अमेरिका के हथियार और माल से खौफ का मिसाल बने ओसामा के लाल जब अपने बनाने वालों पर ही लाल-पीले होने लगे तो मामला बहुत बिगड़ गया. हमारी बिल्ली, हमीं को म्याउं. पर ओसामा कोई बिल्ली नहीं था. ओसामा ने अमेरिका पर हमला करवा दिया. सऊदी अरब में भी बड़े हमले करवाए. सऊदी शासकों के जिहाद का मंत्र अफगानिस्तान के बाद वह सऊदी में भी ले जाना चाहता था. फिर लंबी जद्दोजहद के बाद अल-कायदा का खात्मा कर दिया. पर उन लड़ाकों का क्या करते. जिनके मुंह लहू लग गया हो उन्हें रूह अफज़ा में वो लज्जत नहीं आती.
अमेरिका के मित्र सऊदी अरब ने उन्हें नए दुश्मन दिए. यमन में, बहरीन में, सोमालिया में, केन्या में. सुन्नी साम्राज्यों से भरे खाड़ी देशों में सद्दाम के जाने के बाद इराक भी शिया हो गया था. शिया बहुल इराक पर सद्दाम की सुन्नी सेना ने कब्जा कर रखा था. पर सद्दाम के जाते ही मुल्क की बागडोर लोकतांत्रिक तरीके से शिया समुदाय के हाथ चली गई. सीरिया में शिया साम्राज्य था. ईरान इन सबकी मदद करता था. सऊदी पैसों ने सीरियाई शासक अल-असद के खिलाफ विद्रोह करवाया. जब उस विद्रोह को बर्बरता से दबा दिया गया तो अल-कायदा के बचे लड़ाकों को भेज दिया गया. उनको वह सब अस्लहे दिए गए जो सेना के पास होते हैं. दो साल से वहां लड़ते-लड़ते वह इतने मजबूत हो गए कि उन्होंने पड़ोस के इराक पर भी कब्जा जमाने की सोच ली. निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसाना, सिर्फ पंथ अलग होने पर सिर काट कर धड़ को सौंप देना जिहाद नहीं होता. कुरआन इस जिहाद की बात भी नहीं करता. पर इनको कुरआन के जिहाद से दरकार नहीं. अमेरिका और सऊदी आकाओं के आदेश से मतलब है.
अमेरिका और उसके मित्र इनको व्यस्त रखना चाहते हैं क्योंकि खाली दिमाग शैतान का घर होता है. शैतान इनके दिमाग में घर कर चुका है. इराक और सीरिया के टुकड़े जोड़कर अगर एक नया सुन्नी मुल्क बन भी गया तो सिलसिला यहीं खत्म नहीं होगा. आज नहीं तो कल अमेरिका और सऊदी इसकी कीमत चुकाएंगे. ओसामा को बनाने की महंगी कीमत चुकाई दुनिया ने. ये सिर्फ उनका सिरदर्द नहीं है. भारत में प्रधानमंत्री मोदी पर सबकी उम्मीदें टिकी हैं और हमारे सिर मुंडाते ही ओले पड़े हैं.